कल एक टीवी डिबेट में दो पैनलिस्टों में मुक़्क़ा-मुक़्की की नौबत आ गई। यह एक नई बात है। एक-दूसरे को गालियाँ देने के क़िस्से तो हम रोज़ देखते-सुनते थे। हाल ही में बीजेपी के गौरव भाटिया ने कांग्रेस की रागिनी नायक से कहा कि आप औरत न होतीं तो बताता। गौरव इसलिए नाराज़ थे कि रागिनी ने एक और डिबेट में उनसे कह दिया था कि तेरा बाप चपरासी है। और रागिनी इसलिए नाराज़ थीं कि गौरव ने कह दिया था कि राहुल तो चपरासी बनने लायक़ भी नहीं हैं।
आशुतोष
क्या वह दिन आ गया है जब टीवी स्टूडियो में गोलियाँ चलेंगी और लाशें गिरेंगी? जी हाँ, मेरी यह बात आज लोगों को अतिशयोक्ति लग सकती हैं लेकिन जो माहौल आजकल बन गया है टीवी डिबेट का और राजनीतिक पार्टियों की तरफ़ से जिस तरह के टीवी पैनलिस्ट भेजे जाते है, उससे मेरी आशंका को सच होने में टाइम नहीं लगेगा। यह आशंका 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले पूरी हो जाए तो भी हैरान मत होइएगा। यह सच होने जा रहा है। एक टीवी डिबेट में बीजेपी के गौरव भाटिया और समाजवादी पार्टी के अनुराग भदौरिया के बीच टीवी स्टूडियो में ही मारपीट हो गई। विडियो खुद ही देख लें।
इस घटना के बाद पुलिस में शिकायत दर्ज़ कराई गई। गौरव भाटिया की तरफ़ से। पुलिस ने अनुराग भदौरिया को हिरासत में भी ले लिया है। नीचे घटना का विडियो और तसवीरें देखें।
दो दिन पहले का एक और वाक़या है। मैं एक टीवी चैनल के स्टूडियो में विधानसभा चुनाव में डिबेट के लिए मौजूद था। एक तरफ़ कांग्रेस की तरफ से रागिनी नायक थीं और दूसरी तरफ़ से गौरव भाटिया। गौरव कुछ महीने पहले तक समाजवादी पार्टी में थे। अब वे बीजेपी में शामिल हो गए हैं। तेज़तर्रार हैं और पूरी तैयारी कर के आते हैं। रागिनी भी पीछे नहीं रहतीं। वे भी ख़ूब बोलती है। और तीखा बोलती हैं। दूसरी तरफ़ राजनीतिक विश्लेषण के लिए मैं था और साथ में कभी मेरे बॉस रहे आलोक मेहता जी। बात शुरू ही हुई थी कि चीख़ा-चिल्ली होने लगी।
गौरव भाटिया और रागिनी एक दूसरे पर चिल्ला रहे थे। ऐंकर ने काफ़ी सँभालने की कोशिश की पर भला उसकी कौन सुनता। अंत में गौरव यह कहते सुने गए, ‘अगर आप औरत नहीं होतीं तो बताता।’
गौरव की यह भाषा ठीक नहीं थी, कम से कम किसी महिला के लिए तो बिलकुल ही इस्तेमाल नहीं होनी चाहिए। किसी तरह ब्रेक हुआ। हम लोग बाहर निकले तो गौरव ने बताया कि जयपुर के एक कार्यक्रम में रागिनी ने टीवी डिबेट में यह कहा था, ‘तेरा बाप चपरासी है।’ उस डिबेट के कुछ हिस्से मैंने भी देखे थे। गौरव यह कहते सुने गए थे कि राहुल गाँधी को तो कोई चपरासी की नौकरी भी नहीं देगा। बदले में रागिनी ने नारा लगवा दिया कि चौकीदार चोर है। पूरी डिबेट आधी-अधूरी ख़त्म हो गयी। बात बाप पर आ गई। नीचे विडियो देखें।
एक टीवी डिबेट में जब मुझसे राजनीतिक माहौल के बारे में पूछा गया तो मुझे कहना पड़ा था कि लोकसभा चुनाव तक राजनीतिक माहौल इतना गंदा होगा, इस हद तक गालीगलौच होगी कि भले लोगों को शर्म आएगी। मुझे नहीं मालूम था कि मेरी बात दो दिन बाद ही सही साबित हो जाएगी। बीजेपी के गौरव भाटिया और समाजवादी पार्टी के अनुराग भदौरिया टीवी डिबेट में ही गुत्थमगुत्था हो जाएँगे। टीवी के इस शर्मनाक टुकड़े को फिर देखें और सोचें कि ऐसा क्यों हो रहा है! इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है?
राजस्थान और तेलंगाना की वोटिंग वाले दिन कांग्रेस की टीवी पैनलिस्ट प्रियंका चतुर्वेदी न जाने किस बात पर कह उठीं कि मै बिना सुने बता सकती हूँ कि आलोक जी और संबित पात्रा ने एक जैसी ही बात कही होगी। आलोक मेहता काफी वरिष्ठ पत्रकार हैं। जब मैंने पत्रकारिता शुरू की थी, तब भी वे काफी वरिष्ठ पद पर थे। उनका काफ़ी सम्मान था। उनकी एक विचारधारा हो सकती है, जैसे कि मेरी है। आप उससे सहमत या असहमत हो सकते हैं पर हर आदमी और हर पत्रकार को अपनी विचारधारा रखने और बोलने का अधिकार है। विचारधारा की वजह से किसी का अपमान नहीं किया जा सकता या अभद्र टिप्पंणी नहीं की जा सकती है। प्रियंका की टिप्पणी आपत्तिजनक थी। उन्हें आलोक जी को एक पार्टी से जोड़ने का काम नही करना चाहिए था। मैंने फ़ौरन आपत्ति की। कहा, आपको इस तरह से किसी भी पत्रकार की छवि को ख़राब करने का अधिकार नहीं है। प्रियंका अमूमन सँभल कर बोलती है। पर उस दिन उनके मुँह से ऐसी टिप्पणी सुनकर मुझे हैरानी हुई।
कांग्रेस व दूसरे दल भी आक्रामक हुए
पिछले कुछ दिनों से मैं महसूस कर रहा हूँ कि कांग्रेस और दूसरी पार्टियों के पैनलिस्ट भी काफी आक्रामक हो गए हैं। वे भी बीजेपी के पैनलिस्टों को तुर्की-ब-तुर्की जवाब देते हैं। निजी टिप्पणी करने में नहीं चूकते। ऐंकर तक पर फ़ब्तियाँ कसते हैं। यह कहने में मुझे बिलकुल संकोच नहीं है कि मोदी जी की सरकार बनने के बाद से बीजेपी के नेता, प्रवक्ता और पैनलिस्ट टीवी डिबेट में ज़बरदस्त तरीक़े से हमलावर हो गए हैं। यहाँ तक कि सीनियर ऐंकर्स का भी लिहाज़ नहीं रखा जाता है। वे टीवी ऐंकर्स जो बीजेपी या मोदी जी के विरोधी माने जाते हैं या उनकी राय से इत्तफ़ाक़ नहीं रखते, उनके सम्मान का क़तई ख़्याल नहीं रखा जाता। राजदीप सरदेसाई जैसे अत्यंत वरिष्ठ संपादक और ऐंकर पर तो विशेष कर निजी टिप्पणियाँ की जाती हैं। अभद्र भाषा का इस्तेमाल होता है।
ऐसी ही आक्रामकता को देख कर एक बार मैंने बीजेपी के एक अत्यंत सौम्य प्रवक्ता से, जो इन दिनों मंत्री भी है, पूछा था कि आप आजकल इतना उत्तेजित क्यों हो जाते हैं, पहले तो आप कभी अपना आपा नहीं खोते थे। उन्होंने जो जवाब दिया, सुन कर मैं चौंक गया। उन्होंने कहा,
‘पहले की बात और थी। अब अगर हम चीखें-चिल्लाएँ नहीं तो हमारे बारे में कहा जाता है कि हमने पार्टी को ठीक से डिफ़ेंड नहीं किया। जो टीवी डिबेट में जितना चीखता है, सामने वाले का मज़ाक़ उड़ाता है, वह उतना ही इफ़ेक्टिव पैनलिस्ट माना जाता है।’
यानी आक्रामकता ज़रूरी है। सामने वाले पर हावी होना है। उसे बोलने नहीं देना है। उसकी बात नहीं सुननी है। ऐंकर अगर पार्टी के विचारों से इत्तफ़ाक़ नहीं रखता है तो उसको बेइज़्ज़त करना है, यह सब टीवी डिबेट की रणनीति का हिस्सा है।
यह बात मेरे एक दूसरे बीजेपी के मित्र ने भी कही। मैं इनको बरसों से जानता हूँ। उन्होंने कहा कि रोज़ टीवी डिबेट की मॉनिटरिंग होती है। सबका रिपोर्ट कार्ड बनता है। यह हिसाब लगता है कि किसने टीवी डिबेट में पार्टी को ठीक ढंग से डिफ़ेंड नहीं किया। उनके मुताबिक़ जो पैनलिस्ट किसी बड़े नेता से नहीं जुड़ा है या क़रीबी नहीं है, उसको ज़्यादा दिक़्क़त होती है। उसके लिए ख़ुद को साबित करने के लिए ज़ोर-ज़ोर से बोलना, अभद्र भाषा का प्रयोग करना आवश्यक हो जाता है।
कांग्रेस भी अब यह खेल समझ कई है। वह प्रमुख विपक्षी पार्टी है। डिबेट में अकसर वही बीजेपी के निशान पर रहती है। पहले उसके पैनलिस्ट ख़ूब निशाना बनते थे, ख़ास तौर पर उन चैनलों में जो वैचारिक स्तर पर बीजेपी के क़रीब माने जाते हैं। लेकिन अब नहीं। कांग्रेस भी अब काफ़ी आक्रामक हो गई है। उसकी समझ में आ गया है कि आक्रामकता का जवाब आक्रामकता से ही दिया जा सकता है। दूसरी पार्टियाँ भी ये गुर सीख गई हैं।
मुझे कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया, ‘अब हम लोगों ने भी यह तय कर लिया है कि इनकी बदतमीज़ी का जवाब उनकी भाषा में ही दिया जाए नहीं तो ये हमें जीने नहीं देंगे।’
राहुल की भाषा में आक्रामकता इसका एक नमूना है। रफ़ाल घोटाले में मोदी जी को निशाना बना कर यह कहना कि चौकीदार चोर है, इस रणनीति का ही हिस्सा है। यानी खेल साफ़ है। अब लिहाज़ नही होगा। जो जैसा बोलेगा, वैसा ही जवाब दिया जाएगा। गाली के बदले गाली। गोली के बदले गोली। काश मैं ऐंकर होता! ख़ूब मज़ा आता।
साथी ऐंकर सावधान। हेलमेट वग़ैरह पहन ले। बुलेटप्रूफ़ जैकेट ले ले। न जाने कब सिर फूट जाए। गोली लग जाए। टीवी डिबेट जंग का मैदान हो गए हैं।
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आशुतोष
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताबऔर पढ़ें »
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