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केंद्र से टकराव की रणनीति पर चलेगी पश्चिम बंगाल सरकार?

क्या ममता बनर्जी सोची समझी रणनीति के तहत केंद्र सरकार के साथ टकराव के रास्ते पर चल पड़ी हैं? क्या तृणमूल कांग्रेस-भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक लड़ाई केंद्र-राज्य सरकारों के बीच की लड़ाई बनने जा रही है? क्या एक बार फिर पश्चिम बंगाल सरकार ‘केंद्र के साथ सौतेले व्यवहार’ को मुद्दा बनाएगी? लगता तो ऐसा ही है।

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नीति आयोग के बहाने मोदी पर निशाना?

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार करने का फ़ैसला कर यह साफ़ कर दिया है कि वह जान बूझ कर केंद्र से टकराव मोल ले रही हैं, जिसकी फ़िलहाल कोई ज़रूरत नहीं है। ममता बनर्जी ने 15 जून को होने वाली नीति आयोग की बैठक में भाग नहीं लेने का फ़ैसला करते हुए एक चिट्ठी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी। इसमें उन्होंने कहा है कि नीति आयोग के पास कोई वित्तीय अधिकार नहीं है, यह किसी तरह राज्य सरकार की वित्तीय मदद नहीं कर सकता, लिहाज़ा इसमें भाग लेने का कोई मतलब नहीं है। वह इसके पहले भी नीति आयोग की बैठकों से दूर रही हैं। उन्होंने इसके पहले बैठक में भाग यह कह कर नहीं लिया था कि वह योजना आयोग को भंग किए जाने के ख़िलाफ़ हैं।
इसके पहले नरेंद्र मोदी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह का भी उन्होंने बॉयकॉट किया था। पहले उन्होंने इसमें भाग लेने का ऐलान किया था, पर बाद में वह पीछे हट गईं। उन्होंने कहा था कि चूँकि मोदी यह झूठा प्रचार कर रहे हैं कि चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल में 50 से ज़्यादा लोग हिंसा में मारे गए, वह विरोध स्वरूप शपथ ग्रहण समारोह में नहीं जाएँगी।

ममता के इस फ़ैसले पर राज्य बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया जताई है। पश्चिम बंगाल बीजेपी के उपाध्यक्ष जय प्रकाश मजुमदार ने मुख्यमंत्री को देशद्रोही तक कह दिया। 

ऐसे समय में जब पूरा देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में आगे बढ़ रहा है, ममता बनर्जी अकेले उनका विरोध कर रही हैं। कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी नीति आयोग की बैठक में भाग लेने जा रहे हैं।


जय प्रकाश मजुमदार, उपाध्यक्ष, पश्चिम बंगाल बीजेपी

केंद्र सरकार ममता के निशाने पर

ममता बनर्जी ने इसके कुछ दिन पहले ही 3 जून को रसोई गैस की कीमत बढ़ाए जाने का विरोध किया था। उन्होंने यह भी कहा था कि चुनाव की वजह से केंद्र सरकार लगातार आर्थिक आँकड़ों को छुपा रही थी, वह अब उन्हीं आँकड़ों को सही मान रही है। यह जान बूझ कर किया गया था।

इसी तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने बेरोज़गारी के मुद्दे पर केंद्र सरकार को जम कर लताड़ा। उन्होंने मोदी को याद दिलाया कि बेरोज़गारी 45 साल के उच्चतम स्तर पर है।

यह पहला मौक़ा नहीं है जब ममता बनर्जी की अगुआई वाली पश्चिम बंगाल सरकार ने नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार का विरोध किया है। उन्होंंने इसके पहले केंद्र सरकार की नीतियों ही नहीं, उसकी योजनाओं का भी विरोध किया है। बंगाल सरकार ने कई मौक़ों पर केंद्रीय योजनाओं को लागू करने से इनकार कर दिया।

स्मार्ट सिटी योजना

मोदी सरकार ने जून 2015 में स्मार्ट सिटी योजना का एलान किया था, जिसके तहत 100 शहरों को चुना गया था। केंद्र सरकार ने इसके लिए पश्चिम बंगाल से कोलकाता, विधान नगर, न्यू टाउन और हल्दिया का चुनाव किया था। विधान नगर और न्यू टाउन कोलकाता के नज़दीक ही हैं और उन्हें एक तरह से कोलकाता का विस्तार ही कहा जा सकता है। हल्दिया मेदिनपुर ज़िले में है। 

ममता बनर्जी ने इसका खुल कर विरोध यह कह कर किया कि इससे असमान विकास होगा। उन्होंने इसके विकल्प के रूप में एक नई योजना दी, जिसमें 10 शहरों का इस तरह विकास किया जाए कि वह पर्यावरण को सुरक्षित रखे। मोदी सरकार ने इसे खारिज कर दिया।

नदी जोड़ो परियोजना का विरोध

पश्चिम बंगाल सरकार ने केंद्र की नदी-जोड़ो परियोजना का विरोध किया था। इसके तहत केंद्र सरकार ने मानस-सनकोष-तीस्ता-गंगा नदियों को जोड़ने की परियोजना बनाई थी। इसके तहत इन नदियों को आपस में जोड़ कर सिंचाई, पीने के पानी और बाढ़ नियंत्रण का इंतजाम करना था। इसमें पश्चिम बंगाल के साथ बिहार और असम सरकारों को मिल कर काम करना था। तत्कालीन जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने इस पर कई चिट्ठियाँ मुख्यमंत्री को लिखीं, पर बात आगे नहीं बढ़ी।

कॉमन इंजीनियरिंग एन्ट्रेन्स

केंद्र सरकार ने प्रस्ताव रखा कि पूरे देश में एक ही इंजीनियरिंग एन्ट्रेन्स परीक्षा हो और राज्यों में होने वाली अलग-अलग परीक्षाएँ ख़त्म कर दी जाएँ। पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने इसका विरोध करते हुए एक चिट्ठी केंद्रीय शिक्षा मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को लिखी। इस ख़त में कहा गया कि यह राज्य के अधिकारों का उल्लंघन है।

स्वच्छ भारत सर्वेक्षण

पश्चिम बंगाल सरकार ने स्वच्छ भारत सर्वेक्षण से ख़ुद को अलग कर लिया। इस सर्वेक्षण के तहत पूरे देश के 500 शहरों का सर्वेक्षण किया गया और स्वच्छता के आधार पर उसकी सूची बनाई गई। लेकिन इसमें राज्य के 60 शहरों ने हिस्सा नहीं लिया। पश्चिम बंगाल के शहरी विकास सचिव ओंकार सिंह मीणा ने कहा कि सरकार ने पूरे राज्य को खुले में शौच से मुक्त कराने के लिए ‘मिशन निर्मल बांग्ला’ शुरू किया है। उस पर काम किया जा रहा है, लिहाज़ा, सर्वे की कोई ज़रूरत नहीं है।

कैशलेस स्कीम

ममता बनर्जी ने नोटबंदी का विरोध किया था। राज्य सरकार ने कैशलेस भुगतान की मुहिम में शामिल होने से इनकार कर दिया था। जब केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को ग्रामीणो को सीधे उनके अकाउंट में पैसे देने की बात कही, ममता सरकार ने कहा ये पैसे उसे दिए जाएँ, वह सबको दे देगी। राज्य सरकार ने सबको जन वितरण प्रणाली के तहत 2 रुपये किलो चावल देने की योजना बनाई और केंद्र से पैसे माँगे। बाद में राज्य सरकार ने यह स्कीम लागू की और आज भी ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले सबको इस दर पर चावल दिया जाता है।

यूजीसी से असहयोग

इसी तरह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने जब सभी विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलरों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए जोड़ने की कोशिश की थी, शिक्षा विभाग ने उनसे कहा था कि वे यूजीसी के कार्यक्रम से न जुड़ें। शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा था कि वाइस चांसलर उस समय चल रही परीक्षाओं में व्यस्त थे, इसलिए यूजीसी से नहीं जुड़ सके। पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह सिर्फ़ बहाना था, ममता सरकार इसके ज़रिेए सिर्फ़ केंद्र से टकराव का संकेत देना चाहती थीं। 

केंद्रीय योजना का नाम बदला

इसी तरह पश्चिम बंगाल सरकार ने मोदी सरकार की एक योजना का नाम बदल दिया। उसने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का नाम बदल कर ‘बांग्लार ग्राम सड़क योजना’ कर दिया। राज्य सरकार का तर्क है कि इस योजना में राज्य सरकार भी पैसा लगाती है तो नाम सिर्फ़ प्रधानमंत्री का क्यों हो। इसी तरह राज्य सरकार ने केंद्र की कई योजनाओं के नाम बदल दिए। इसने 'नेशनल रूरल लाइवलीहुड मिशन' यानी 'आजीविका' का नाम बदल कर 'आनन्दधारा' कर दिया। इसी तरह 'स्वच्छ भारत मिशन' का नाम बदल कर 'मिशन निर्मल बांग्ला', 'प्रधानमंत्री आवास योजना' का नाम बदल कर 'बांग्लार गृह प्रकल्प' कर दिया गया। 
West Bengal government to confront Centre Modi government? - Satya Hindi
West Bengal government to confront Centre Modi government? - Satya Hindi

कोलकाता पुलिस प्रमुख के बहाने केंद्र पर हमला

इसके पहले ममता बनर्जी ने तत्कालीन कोलकाता पुलिस प्रमुख राजीव कुमार के घर सीबीआई छापे पर हंगामा खड़ा कर दिया और ख़ुद धरने पर बैठ गईं। उन्होंने इसके ज़रिए सीबीआई और सीबीआई के बहाने केंद्र सरकार पर ज़बरदस्त हमला बोल दिया। सीबीआई 40 लोगों के दलबल के साथ कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर पहुँची थी। पश्चिम बंगाल सरकार का मानना था कि सीबीआई राजीव कुमार को गिरफ़्तार करने के लिए आई थी। ममता बनर्जी ने सीबीआई के इस क़दम की तीख़ी निंदा की थी और आनन-फानन में वह राजीव कुमार के घर जा पहुँची और बिना किसी पूर्व सूचना के वह वहीं धरने पर बैठ गईं थीं।  ममता के धरने पर बैठते ही पूरे देश में हंगामा मच गया। ममता ने कहा कि देश का संविधान और लोकतंत्र ख़तरे में है। 
अरविंद केजरीवाल, राहुल गाँधी, अखिलेश यादव, चंद्रबाबू नायडू, तेजस्वी यादव और दूसरे विपक्षी नेताओं ने ममता का समर्थन किया और मोदी सरकार पर आरोप लगाए कि वह सीबीआई का दुरुपयोग कर विपक्षी सरकारों और नेताओं को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है।
केंद्र सरकार का विरोध पश्चिम बंगाल में नया नहीं है। जब वाम मोर्चा सरकार थी और ज्योति बसु मुख्यमंत्री थे, उन्होंने राजीव गाँधी सरकार के ख़िलाफ़ बड़ी मुहिम चला रखी थी। उन्होंने राजीव सरकार पर पश्चिम बंगाल से सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया था और लोगों को बताया था कि किस तरह केंद्र सरकार राज्य का विकास नहीं होने दे रही है। इस मामले में वह काफ़ी हद तक कामयाब भी रहे थे। 
लगता है ममता बनर्जी उसी रास्ते पर चल रही हैं। इससे वह बीजेपी को बंगाल विरोधी साबित करने की कोशिश करेंगी। तृणमूल की रणनीति यह तो है ही किसी तरह बीजेपी को बाहरी लोगों की पार्टी साबित कर दिया जाए। इसे यदि बंगाल विरोधी साबित करने में थोड़ी भी कामयाबी मिल गई तो सत्तारूढ़ दल को अधिक लाभ है। इसके साथ ही राज्य सरकार की अपनी लोक कल्याण की योजनाएँ तो हैं ही, दोनों को मिला कर वह यह साबित कर सकती हैं कि राज्य का विकास एक मात्र तृणमूल के हाथों ही मुमिकन है। यह रणनीति कितनी कामयाब होगी, इसे समझने में थोड़ा समय लगेगा। 
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क़मर वहीद नक़वी
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