कोरोना महामारी के संकट और लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था को पड़ी गहरी चोट के बीच बीजेपी का पूरा फ़ोकस पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव पर है। हालांकि उसकी तैयारी बिहार में भी जोरदार है लेकिन बंगाल से ममता सरकार को हटाने का सपना वह 2014 से बड़ी शिद्दत से देख रही है।
ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के बाद वह राज्य में दूसरी बड़ी पार्टी बन चुकी है। लेकिन इसके साथ ही वहां मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार सामने आने के कारण उसके लिए मुश्किल भी खड़ी हो चुकी है।
पश्चिम बंगाल में बीजेपी किसे मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करेगी, ये बहस पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय के फिर से बीजेपी ज्वाइन करने की ख़बरों के बीच और तेज हो गई है। लेकिन इससे पहले थोड़ा पश्चिम बंगाल की राजनीति पर बात करनी ज़रूरी है।
2014 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में सिर्फ 2 सीटें मिलने के बाद ये किसी ने नहीं सोचा था कि बीजेपी 2019 के चुनाव में 18 सीटें जीत जाएगी। इसके पीछे बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जबरदस्त मेहनत और उनकी चुनावी रणनीति भी है।
शाह इन 5 सालों के दौरान बंगाल जाते रहे, तृणमूल से नेताओं को बीजेपी में लाते रहे और राष्ट्रवाद और बंगाली घुसपैठियों के ख़िलाफ़ अपने पुराने पड़ चुके बयानों को हर रैली में दोहराते रहे। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रभारी बनाए गए कैलाश विजयवर्गीय ने भी वहां लगातार दौरे करके माहौल बनाए रखा।
इस बीच बीजेपी और तृणमूल के कार्यकर्ताओं के बीच कई बार खूनी झड़पें हुईं, जिसमें दोनों ओर के कार्यकर्ताओं को अपनी जान गंवानी पड़ी। विधानसभा से लेकर पंचायत और लोकसभा चुनाव तक दोनों दलों के कार्यकर्ता बुरी तरह भिड़ते रहे।
सीएए, एनआरसी का मुद्दा
2019 में बड़ा समर्थन मिलने के बाद अमित शाह को यह अहसास हो गया था कि थोड़ा सा जोर और लगाया जाए तो पार्टी 2021 के विधानसभा चुनाव में बंगाल में झंडा फहरा सकती है। इसलिए बंगाल बीजेपी ने नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (एनआरसी) को लेकर राज्य का माहौल गर्मा दिया। लेकिन बीजेपी का पाला वहां उन ममता बनर्जी से पड़ा है जिन्होंने कांग्रेस से निकलकर राज्य में अपना वजूद बनाया है। वो ममता बनर्जी जिन्होंने बरसों तक खूंटा गाड़कर बैठे रहे वाम दलों को वहां की सत्ता से सिर्फ़ अपने दम पर उखाड़ फेंका है।
ममता ने दिखाया दमखम
ममता बनर्जी ने सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ जोरदार रैलियां की और सड़कों पर निकलकर यह दिखा दिया कि विपक्षी नेताओं में मोदी-शाह से मुक़ाबले का माद्दा सिर्फ उनके भीतर है। लेकिन कोरोना संकट के कारण माहौल थोड़ा ठंडा पड़ गया। इस बीच, प्रवासियों के लिए ट्रेनें चलाने से लेकर, लॉकडाउन लगाने और कई मुद्दों पर तृणमूल और बीजेपी आमने-सामने आते रहे।
ममता को इस बात का अहसास है कि 2014 की उनकी 34 सीटें 2019 में घटकर 22 हो गई हैं। वह यह भी जानती हैं कि बीजेपी दिन-रात हिंदू राष्ट्रवाद के नाम पर ध्रुवीकरण की कोशिश में जुटी है। इसलिए वह बेहद सतर्क हैं और सक्रिय भी।
हम फिर वहीं लौटते हैं कि कौन होगा बीजेपी की ओर से सीएम पद का उम्मीदवार जो ममता बनर्जी जैसी हैवीवेट नेता को टक्कर दे सके। इसके लिए कुछ नेताओं के बारे में बात करते हैं।
दिलीप घोष
इनमें पहला नाम आता है राज्य बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप घोष का। अपने उल-जूलूल बयानों के लिए चर्चा में रहने वाले घोष को उनके समर्थक मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाने के लिए जोर लगा रहे हैं। उनके समर्थक कहते हैं कि 2019 में बीजेपी को मिली जीत का सेहरा घोष के सिर ही बांधा जाना चाहिए। लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े रहे दिलीप घोष संघ के लिए कई राज्यों में काम कर चुके हैं।
तथागत रॉय
प्रोफ़ेसर तथागत रॉय 2002 से 2006 तक बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष रहे हैं। संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले रॉय ने 1990 में सरकारी नौकरी छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था। पार्टी ने केंद्र की सत्ता में आने के बाद उन्हें इसका इनाम भी दिया और कई राज्यों का गर्वनर नियुक्त किया। अब रॉय फिर से बंगाल बीजेपी की राजनीति में वापस आ रहे हैं और पुराने नेता होने के चलते उनके भी काफी समर्थक हैं जो उन्हें मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं।
मुकुल रॉय
सारदा घोटाले में फंस चुके मुकुल रॉय भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। मुकुल रॉय पर बीजेपी हाईकमान का भरोसा भी दिखता है लेकिन उनके साथ माइनस प्वाइंट यह है कि वे तृणमूल से बीजेपी में आए हैं। ऐसे में पार्टी में पहले से काम कर रहे नेता उनके नाम पर राजी नहीं होंगे। उनके समर्थकों को मनाने के लिए पार्टी रॉय को राज्यसभा भेजने के बाद मोदी कैबिनेट के जल्द होने वाले विस्तार में केंद्रीय मंत्री बना सकती है। उनके समर्थक भी अपने नेता को बंगाल का मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं।
सौमित्र ख़ान
बंगाल में बीजेपी के मुसलिम चेहरे और सांसद सौमित्र ख़ान ने कुछ दिन पहले लोगों को तब हैरान कर दिया था जब उन्होंने अपना सिर मुड़ाया, हवन कराया और इस बात की घोषणा कि जब तक राज्य से ममता बनर्जी की सरकार चली नहीं जाती वे केवल भगवा वस्त्र ही धारण करेंगे। ख़ान की ये तसवीरें खू़ब वायरल हुईं और ये माना गया कि उनकी भी चाहत राज्य का मुखिया बनने की है। बंगाल की 27 फ़ीसदी मुसलिम आबादी के बीच ख़ान के इस नए अवतार की जोरदार चर्चा है।
बाबुल सुप्रियो
केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो के पास राजनीतिक अनुभव बहुत ज़्यादा नहीं है और ऐसे में ममता बनर्जी जैसी वजनदार नेता के सामने पार्टी उन पर दांव लगाएगी, ऐसा बिलकुल नहीं लगता।
बीजेपी की मजबूरी
बीजेपी जानती है कि अगर उसे राज्य में सरकार बनानी है तो इस लड़ाई को रोकना होगा। इसलिए कैलाश विजयवर्गीय ने कहा है कि बीजेपी को पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है और वह किसी को भी मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर चुनाव नहीं लडे़गी। लेकिन पीटीआई द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या पार्टी ने इसके लिए किसी के नाम पर विचार किया है, विजयवर्गीय ने कहा कि इसका जवाब समय के पास है। इसका मतलब साफ है कि पार्टी जानती है कि उसे ऐसा करना पड़ सकता है।
‘220-230 सीटें जीतना लक्ष्य’
विजयवर्गीय ने जीत की हुंकार भरते हुए कहा कि 294 सदस्यों वाली बंगाल विधानसभा में बीजेपी का लक्ष्य 220-230 सीटें जीतना है। देखना होगा कि क्या बीजेपी किसी नेता को मैदान में उतारती है और अगर उतारती है तो क्या वह ममता बनर्जी के सामने टिक पाता है या नहीं। तब तक बंगाल का सियासी माहौल पूरी तरह गर्म रहेगा, इसमें कोई शक नहीं है।
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