देश में एक अजीबोगरीब माहौल है। हर एक मुद्दे पर देश बँटा दिखता है। दो अलग-अलग विचार एक-दूसरे से लड़ते नज़र आते हैं। दिक्कत इसलिए भी और बढ़ जाती है क्योंकि दोनों पक्ष अपने-अपने विचारों पर अमल को नाक का विषय बना लेते हैं। सहमति बनाने के लिए कोई पहल नहीं होती। जो होता है एकतरफ़ा होता है। देश के 26 लाख छात्र इसी द्वंद्वात्मक राजनीतिक परिवेश के बुरे नतीजे को झेल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप भी सवालों को ख़त्म करने के बजाए सवाल पैदा कर रहा है।