देश की अर्थव्यवस्था सिकुड़ने जा रही है। वजह है ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’! अगर हम ग़लत न समझ रहे हों तो वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने कोरोना महामारी को ही ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’ कहा है। इस हिसाब से इसे हिन्दी में ‘दैवी आपदा’ भी बोल सकते हैं। यह तथ्य बिल्कुल सत्य है कि कोरोना की महामारी भी है और अर्थव्यवस्था पर उसका बुरा असर भी। मगर, यह अधूरा सच है। ऐसा कहकर बीते छह सालों में लगातार गिरती अर्थव्यवस्था के वाजिब कारणों को पहचाने से भी बचने की कोशिश कर रही है केंद्र सरकार। तो क्या ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’ के नाम पर ‘एक्ट ऑफ़ गवर्नमेंट’ या फिर कह लें ‘एक्ट ऑफ़ लॉर्ड’ की कारगुजारियों पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है?
2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे तब देश की इकॉनोमी 2 ट्रिलियन डॉलर की हो चुकी थी, मगर दिसंबर 2019 में दावा और एलान कर दिए जाने के बावजूद आज तक देश की इकॉनोमी 3 ट्रिलियन डॉलर की नहीं हो सकी है। वित्तमंत्री के हिसाब से अब तो ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’ भोग रहा है देश। लिहाज़ा यह मुकाम भी अब दूर की कौड़ी हो गयी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 ट्रिलियन इकॉनोमी का जो सपना दिखाते रहे हैं उसकी बात तो ना ही करें तो बेहतर होगा।
नोटबंदी के बाद कभी संभली नहीं इकॉनोमी
देश में नोटबंदी की तारीख़ थी 9 नवंबर 2016। इस साल तक देश की इकॉनोमी मोदी राज में भी आगे बढ़ती दिख रही थी। 2014-15 में 8% और 2015-16 में 8.2% की विकास दर थी। मगर, नोटबंदी के बाद से इसमें लगातार गिरावट आती चली गयी। 2017-18, 2018-19 और 2019-20 में जीडीपी का आँकड़ा क्रमश: 7.2%, 6.1% और 4.2% रहा। भारतीय रेटिंग एजेंसी ICRA ने 2020-21 में जीडीपी में विकास दर का अनुमान -9.5% लगाया है।
दुनिया की 42 बड़ी इकॉनोमी में तीसरी या चौथी फ़ास्टेस्ट ग्रोइंग इकॉनोमी भारत की हुआ करती थी। मोदी राज में भारत ने सचमुच फ़ास्टेस्ट ग्रोइंग इकॉनोमी का दर्जा हासिल कर लिया था जब चीन की इकॉनोमी सुस्त हुई। मगर, नोटबंदी के बाद जीएसटी के बुरे नतीजों ने जब इकॉनोमी पर डबल अटैक किया, तो यह दर्जा भी चार दिन की चांदनी बनकर रह गया। 2018-19 में यह रुतबा चला गया।
आज स्थिति यह है कि दुनिया की 42 बड़ी इकॉनोमी में भारत 35वीं बड़ी इकॉनोमी (?) रह गया है। क्या ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’ के पीछे इस सच्चाई को छिपाया जा सकता है?
जीएसटी के बाद टैक्स कलेक्शन में बढ़ोतरी रुकी
नोटबंदी का नतीजा जीडीपी के ग्रोथ में दिख जाता है। सत्ताधारी दल के नेता भी नोटबंदी का बचाव करने को सामने नहीं आते। मगर, जीएसटी को ‘वन टैक्स वन नेशन’ के तौर पर लागू करते हुए इसे दूसरी आज़ादी तक बताया गया था। इसकी भी हवा निकल गयी है। पंचर हो चुकी इस टैक्स योजना के दुष्परिणाम को समझना हो तो सीएजी 2019 की रिपोर्ट देख लीजिए। इसके पैराग्राफ़ 2.1.1 में टैक्स कलेक्शन के आँकड़े हैं। जब जीएसटी लागू नहीं हुआ था तब टैक्स कलेक्शन का ग्रोथ रेट था 21.33%। जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स कलेक्शन का ग्रोथ रेट 2017-18 में 5.80% रह गया। आगे भी यही ट्रेंड दिखा है। 2018-19 और 2019-20 में जीएसटी कलेक्शन में बढ़ोतरी की दर 9.2 फ़ीसदी और 8 फ़ीसदी की रही।
जीएसटी लागू करते समय प्रदेश की सरकारों को ऐसे हसीन सपने दिखाए गये थे कि जीएसटी कलेक्शन धीरे-धीरे बढ़ते हुए प्रति महीने 1.5 लाख करोड़ यानी सालाना 18 लाख करोड़ के स्तर पर पहुँच जाएगा। मगर, पिछले दो सालों के रिकॉर्ड पर नज़र डालें तो 2018-19 में यह 8,76,794 करोड़ रुपये रहा था और 2019-20 में 9,44,414 करोड़ रुपये। कह सकते हैं कि आधी उम्मीद भी पूरी नहीं हुई।
अगर ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’ के प्रभाव को यहाँ देखें तो उसका बड़ा असर कोरोनाकाल में निश्चित रूप से जीएसटी कलेक्शन पर दिखता है। अप्रैल महीने में महज़ 32,294 करोड़ का कलेक्शन, मई में 62,009 करोड़, जून में सुधरकर 90,917 करोड़ और फिर जुलाई में गिरकर 87,422 करोड़ का कलेक्शन सामने है। पहले से उम्मीद का आधा कलेक्शन जब अप्रत्याशित रूप से और भी नीचे चला गया हो तो समस्या पैदा होना लाजिमी है।
प्रदेश सरकारें अपना हक लें या लोन?
केंद्र सरकार ने कोरोना काल के चार महीनों- अप्रैल, मई, जून और जुलाई का जीएसटी कंपंसेशन प्रदेश की सरकारों को नहीं दिया है। यह रक़म 1.5 लाख करोड़ बनती है। समझने की बात यह है कि जीएसटी लागू करते समय प्रदेश सरकारों से कहा गया था कि टैक्स कलेक्शन का ग्रोथ रेट औसतन 14 फ़ीसदी रहेगा। इससे जितना कम कलेक्शन होगा, उसकी भरपाई केंद्र सरकार करेगी। हर दो महीने में इसका आकलन कर आवश्यक रक़म प्रदेश सरकारों को दिया जाना था।
जीएसटी लागू होने की तिथि 1 जुलाई 2017 से अगले 5 साल तक यह व्यवस्था रहनी थी। इसी वजह से जीएसटी कंपंसेशन की स्थिति बनी है। यह प्रदेश सरकारों का हक है। पुराने टैक्स सिस्टम में प्रदेशों को होने वाली आमदनी का घटना प्रदेश सरकारें क्यों बर्दाश्त करें?
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने जो सुझाया है उसके मुताबिक़ रिज़र्व बैंक से वह प्रदेश की सरकारों को सस्ते दर पर कंपंसेशन की रक़म क़र्ज़ के तौर पर दिलाने को तैयार हैं। पाँच साल के भीतर जीएसटी से मिलने वाली रक़म से इसे चुका दिया जाएगा। मगर, क़र्ज़ प्रदेश सरकार के नाम से जारी किए जाएँगे। जीएसटी की बैठक में प्रदेश सरकारों ने सोचने का वक़्त माँगा है।
आगे और भी बढ़ने वाली है चिंता
चिंता की बात यह है कि ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’ का प्रभाव अभी ख़त्म नहीं हुआ है बल्कि शुरू हुआ है। जो जीएसटी कंपंसेशन आज 1.5 लाख करोड़ है, वही रक़म ICRA के अनुमान के मुताबिक़ 2020-21 में 3.5 लाख करोड़ तक पहुँच जाने वाली है। क्या आगे भी रिज़र्व बैंक से क़र्ज़ लेकर इसकी भरपाई का रास्ता निकलेगा? समस्या तो हल होने के बजाए और उलझ जाएगी।
वित्तमंत्री बहुत सही कह रही हैं कि अर्थव्यवस्था सिकुड़ने जा रही है। इसकी झलक औद्योगिक उत्पादन में देखने को मिलती है। बीते 16 साल में औसत औद्योगिक उत्पादन 5.63 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। अधिकतम नवंबर 2006 में 19.9 प्रतिशत था और न्यूनतम अप्रैल 2020 में -57.6 प्रतिशत है। मार्च महीने में जब कोरोना का प्रकोप चरम पर नहीं था, तभी औद्योगिक उत्पादन की दर -18.3 फ़ीसदी गिर चुकी थी। चार महीने तक सकारात्मक वृद्धि दर के बाद यह गिरावट थी। जबकि, इससे पहले भी लगातार कई महीने तक औद्योगिक उत्पादन ऋणात्मक रहा था। तब तो ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’ दूर-दूर तक नहीं था!
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