छात्रों के प्रति संवेदनहीन क्यों?
करीब 26 लाख छात्रों और उनके परिजनों समेत तकरीबन 1 करोड़ लोगों को कोरोना से जुड़ी हर छोटी-बड़ी ख़बर जितना परेशान कर रही है, उसे महसूस करने के लिए संवेदना का होना बहुत ज़रूरी है।- तमिलनाडु से कांग्रेस सांसद हरिकृष्णन वसंत कुमार की कोरोना की वजह से मौत
- संसद सत्र शुरू होने के 72 घंटे पहले हर सांसद को कराना होगा कोविड-19 टेस्ट
- 1 लाख से ज्यादा कोरोना वाला देश का 10 वां प्रदेश बना असम
- ओडिशा सरकार JEE-NEET परीक्षार्थियों को सेंटर तक पहुंचाने ठहराने का इंतजाम करेगी
- भीड़ में जाने का डर सता रहा है 26 लाख परीक्षार्थियों को
- 2 विधायकों के कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाने के बाद पंजाब के सीएम सेल्फ क्वारंटीन
- दुबई में आईपीएल खेलने गयी टीम सीएसके के गेंदबाज और कई स्टाफ को कोरोना का संक्रमण
सांसदों का कोरोना टेस्ट ज़रूरी
कोरोना से जुड़ी हर ख़बर जेईई-एनईईटी के परीक्षार्थियों की धड़कनें बढ़ाने वाली हैं। मगर, इस ख़बर ने तो हर किसी को चौंका दिया है कि संसद सत्र शुरू होने से पहले हर सांसद को कोविड-19 टेस्ट कराना ज़रूरी है। चौंकाया इसलिए है कि ऐसा ही एहतियात देश के आम लोगों के लिए क्यों नहीं बरता जा रहा है!ऐसा क्यों है कि नीति निर्माताओं की जान को स्पेशल माना जा रहा है और जो छात्र देश के भविष्य हैं उनकी जान के साथ खिलवाड़ करने की केंद्र सरकार ने ठान ली है?
12 गुणा कम जगह में बैठेंगे परीक्षार्थी
2 लाख 61 हजार 360 वर्ग फीट क्षेत्रफल वाले पार्लियामेंट के दोनों सदनों में 788 सदस्य हैं। इनमें 245 राज्यसभा में और 543 लोकसभा में। इसका मतलब यह हुआ कि हरेक सांसद के लिए 331.675 वर्गफीट उपलब्ध है। यह क्षेत्रफल तकरीबन 20 x 16 वर्गफीट के कमरे के क्षेत्रफल के बराबर है। इतने बड़े कमरे में एनईईटी-जेईई के 24 परीक्षार्थियों के लिए बैठने की व्यवस्था हो सकती है। 6 बेंच-डेस्क वाली दो जोड़ियाँ कमरे में बन सकती हैं।मानव संसाधन मंत्रालय के निर्देश मानें तो एक कमरे में अगर 12 परीक्षार्थी ही बैठे, तो इसका मतलब होगा कि एक सांसद के मुकाबले परीक्षार्थी को 12 गुणा छोटी जगह बैठने को मिलेगी।
वर्चुअल परीक्षा क्यों नहीं?
सवाल यह भी है कि जब कॉरपोरेट घराने नौकरी के लिए इंटरव्यू तक वर्चुअल कर रहे हैं तो परीक्षा वर्चुअल कराने की सोच सरकार के पास क्यों नहीं है?
माननीय न्यायाधीश वर्चुअल सुनवाई कर सकते हैं, प्रधानमंत्री वर्चुअल मीटिंग कर सकते हैं और यहाँ तक कि स्कूल-कॉलेज सब वर्चुअल है। ऐसे में परीक्षा वर्चुअल क्यों नहीं हो सकती?
यूजीसी गाइडलाइन्स
सुप्रीम कोर्ट यूजीसी के उस गाइडलाइन को सही ठहराता है जिसमें बगैर परीक्षा दिए किसी को प्रोमोट नहीं किया जा सकता। मगर, वर्चुअल परीक्षा कराने की ज़िम्मेदारी पर खामोशी है। यूजीसी और सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चुप हैं। क्या इसलिए कि छात्रों में और उनके अभिभावकों के पास वो ताकत नहीं है जो सुविधाभोगी वर्ग के पास है?स्कूल-कॉलेज बंद क्यों?
अगर परीक्षा देने के लिए छात्र स्कूलों में बने सेंटरों तक जा सकते हैं तो नियमित कक्षा के लिए वे स्कूल क्यों नहीं पहुँच सकते? तो क्या इसका मतलब यह है कि स्कूल-कॉलेज खोल दिए जाने चाहिए और जो अब तक बंद रखे गये थे वह ग़लत हैं?छात्रों का सहारा स्ट्रीट फ़ूड
कोविड-19 के दौर में यह जोखिम भरा है। सड़क पर इडली-डोसा खा लेना, मोमोज़ का स्वाद चख लेना या फिर चाय-समोसे से भूख भुला देना छात्रों की फितरत रही है। छात्र इस स्वभाव को छोड़ नहीं सकते। और, अगर इस स्वभाव पर वे टिके रहते हैं तो इसका मतलब होगा कोरोना के मकड़जाल में फंसने को तैयार रहना। क्या यह महत्वपूर्ण बात नहीं है?कोरोना से सिर्फ नेता डरें, छात्र नहीं!
कोरोना की वजह से राजस्थान में चुनी हुई सरकार को विधानसभा का सत्र बुलाए जाने का आदेश नहीं दे रहे थे राज्यपाल। तरह-तरह की शर्तें लगा रहे थे। क्यों? क्योंकि, उन्हें जनप्रतिनिधियों की जान की फिक्र थी! मध्यप्रदेश के स्पीकर को भी ऐसी ही फिक्र हुई थी जब 26 मार्च तक विधानसभा का सत्र स्थगित कर दिया गया था।मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कोरोना से संक्रमित हो गये। उत्तर प्रदेश में दो केंद्रीय मंत्री की जान चली गयी। देश के गृहमंत्री तक इसकी चपेट में आए।
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