पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के पहले सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने महिला मतदाताओं को रिझाने के लिए नए नारे गढ़े हैं, नई रणनीति बनाई है और उन पर पूरी तरह फोकस किया है। दूसरी ओर चुनाव में बड़े दावेदार के रूप में उभर रही भारतीय जनता पार्टी एक के बाद एक कई कदम उठा रही है, जिससे उसकी महिला-विरोधी छवि बनती जा रही है। लेकिन वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा कर सकती है, जो उज्ज्वला जैसी स्कीमों के बल पर महिलाओं को अपनी ओर मोड़ सकते हैं। सवाल यह है कि महिलाओं को अपनी ओर लाने में कामयाब कौन होगा-तृणमूल कांग्रेस या बीजेपी।
तृणमूल कांग्रेस ने एलान कर रखा है कि वह कम से कम 30 प्रतिशत सीटें महिला उम्मीदवारों के लिए सुरक्षित रखेगी। तृणमूल कांग्रेस ने पिछली बार 30 प्रतिशत से ज़्यादा महिला उम्मीदवार मैदान में उतारे थे और वह इस बार भी ऐसा करेगी। बीजेपी की ओर से ऐसा कोई एलान अब तक नहीं हुआ है।
कितनी महिलाओं को टिकट देगी बीजेपी?
एक बड़ी वजह यह है कि पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज होने की कोशिश में बीजेपी उन्हीं लोगों को टिकट दे रही है जिनके जीतने की संभावना ज़्यादा है। पश्चिम बंगाल की राजनीति में अपेक्षाकृत नई बीजेपी का संगठन शहरों तक सीमित है।
कस्बों और गाँवों में बीजेपी के पास ऐसा संगठन नहीं है कि ज़िला या कस्बे के स्तर पर वह महिला उम्मीदवार ढूंढ ले और उसे जीतने लायक भी समझा जाए। दूसरे, पश्चिम बंगाल बीजेपी ज़्यादा ऐसे लोगों को टिकट दे सकती है जो टीएमसी, सीपीआईएम या कांग्रेस छोड़ कर आए हैं और जिनके जीतने की संभावना हो। ऐसे लोगों में महिलाओं की तादाद कम ही है।
तृणमूल कांग्रेस ने महिलाओं को छूने के लिए 'बांग्ला निजे मेये के चाय' यानी 'बंगाल अपनी बेटी को चाहता है' का नारा बहुत सोच समझा कर उछाला है। इसमें किसी बेटी का नाम नहीं लिया गया है, पर यह साफ है कि वह ममता बनर्जी ही हैं।
टीएमसी की चाल!
पिछले चुनाव में टीएमसी का नारा 'मां माटी मानुष' था, जिसके पीछे की सोच 'मां' के ज़रिए महिलाओं तक पहुँचने की थी और वह उसमें कामयाब रही थी।
बीजेपी ने बेटी या मां से जुड़ा कोई नारा नहीं ही दिया है। गृह मंत्री अमित शाह ने हास्यबोध या स्मार्ट लगने वाली बात कहने की मंशा से कहा, “अब समय आ गया है कि बेटी को विदा कर दिया जाए।” लेकिन उसके साथ ज़्यादा बुरी बात यह हुई कि केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने कह दिया, "बेटी पराया धन होती है, इस बार विदा कर देंगे।"
तीखी प्रतिक्रिया
इस पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है। राज्य टीएमसी प्रवक्ता देवांशु भट्टाचार्य ने कहा, "ये हैं केंद्रीय मंत्री। शर्म!"
राज्य की महिला व बाल विकास मंत्री शशि पांजा ने कहा कि इससे यह साफ होता है, “भगवा पार्टी में पुरुष वर्चस्व व महिला-विरोधी भावनाएं किस तरह अंदर तक घुसी हुई हैं।”
.@SuPriyoBabul ji, I am extremely worried about the state of women's affairs in this country if public representatives like you endorse such chauvinist views.
— Dr. Shashi Panja (@DrShashiPanja) February 27, 2021
STUNNED and SHOCKED to see how deep and wide sexism runs in @BJP4India leaders!! #BanglaNijerMeyekeiChay pic.twitter.com/XWoUdRenOw
इसके बाद टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन और बाबुल सुप्रियो के बीच वाक-युद्ध चला। बाद में बाबुल सुप्रियो ने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया और अपनी ओर से सफाई भी दी। उन्होंने पुरुषवादी सोच से इनकार करते हुए कहा कि खुद उनकी दो बेटियाँ हैं। लेकिन तब तक पश्चिम बंगाल बीजेपी को जो नुक़सान होना था, वह हो चुका।
बीजेपी का सेल्फ़-गोल
इसके पहले भी महिला मुद्दे पर पश्चिम बंगाल बीजेपी सेल्फ़- गोल कर चुकी है। एक तो 'जय श्री राम' नारा पश्चिम बंगाल की संस्कृति के अनुरूप नहीं है और उस पर बीजेपी अड़ी हुई है। दूसरे टीएमसी ने 'जय श्री राम' के सामने 'जय माँ दुर्गा' का नारा दिया। काली और दुर्गा, ये दोनों ही हिन्दू देवियाँ पश्चिम बंगाल की संस्कृति का ज़रूरी हिस्सा ही नहीं हैं, बल्कि बंगाली अस्मिता की प्रतीक भी समझी जाती हैं। ये मातृ-सत्तात्मक सोच की प्रतीक हैं और पश्चिम बंगाल का समाज मातृ-सत्तात्मक सोच के काफी नजदीक है।
बीजेपी इस मामले में टीएमसी की जाल में चल कर आई और जानबूझ कर फँसी है। पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, "राम तो सम्राट थे, उनके पुरखों के बारे में सबको पता है, वे तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे। दुर्गा के माता-पिता के बारे में किसी को कुछ पता है?"
इस पर भी बवाल मचा और इसकी कीमत भी बीजेपी को चुकानी ही होगी।
इसी लड़ाई को टीएमसी ने और आगे बढ़ाया जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने उत्तरी बंगाल के जलपाईगुड़ी में कहा, "हम कहते हैं जय सियाराम, लेकिन बीजेपी वाले जय श्री राम करते हैं, वे जय सिया राम नहीं कह सकते है, इससे साफ है कि वे सीता को स्वीकार नहीं कर सकते।"
कन्या श्री
प्रतीकों की इस लड़ाई से हट कर जब वास्तविक दुनिया की बात करते हैं और महिलाओं को मिलने वाली सुविधाओं की बात करते हैं, तो उसमें भी टीएमसी आगे दिखती है।
टीएमसी बार-बार पश्चिम बंगाल सरकार की 'कन्या श्री' योजना का हवाला देती है और बीजेपी को चुनौती देती है कि वह इसके बराबर क्या कर रही है, यह बताए।
'कन्या श्री' योजना के तहत 13 से 18 साल की उम्र की लड़कियों को हर साल एक हज़ार रुपए मिलते हैं और उसके 18 साल की होने पर एकमुश्त 25 हज़ार रुपए दिए जाते हैं।
लेकिन बीजेपी के पास सबसे बड़े आइकॉन नरेंद्र मोदी है जो बार-बार और लगभग हर जगह उज्ज्वला स्कीम का हवाला देते हैं। उज्ज्वला स्कीम निश्चित तौर पर बिहार जैसे राज्यों में काम कर गई और इसने महिलाओं को आकर्षित किया। पश्चिम बंगाल में भी इसका असर पड़ सकता है।
साइकिल स्कीम
पर टीएमसी के पास राज्य सरकार की वह स्कीम है, जिसके तहत स्कूल जाती लड़कियों को साइकिल दी गई। जिस तरह बिहार में इस स्कीम की बहुत ही सकारात्मक सामाजिक प्रतिक्रिया दिखी थी, पश्चिम बंगाल में भी दिखी है। इसने महिलाओं के बीच पहले से लोकप्रिय ममता बनर्जी की छवि को और पुख़्ता किया है।
40 हज़ार सेल्फ हेल्प समूह
टीएसमी के लोग बार-बार यह कहते हैं कि राज्य में 40 हज़ार सेल्फ़-हेल्प समूह है, जो महिलाओं के हाथों में है। इससे गाँवों की महिलाओं की क्रय शक्ति बढ़ी है और सामाजिक सुरक्षा व सम्मान भी। बीजेपी के पास इसका कोई माकूल जवाब नहीं है।
महिला सम्मान
बीजेपी महिलाओं के सम्मान की बात उठाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हुगली समेत कई आमसभाओं में कहा है, “पश्चिम बंगाल में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।” उन्होंने इसके पक्ष में कोई तर्क या आँकड़ा नहीं दिया। दूसरी ओर, टीएमसी को लोग बीजेपी को हाथरस व उन्नाव जैसी घटनाओं का हवाला देकर घेरते हैं और सवाल करते हैं कि बीजेपी-शासित राज्य में महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं, प्रधानमंत्री इसका जवाब दें।
यह स्थिति उस राज्य में है, जहाँ 7.32 करोड़ मतदाताओं में 49 प्रतिशत महिलाएं हैं। दूसरी बात यह है कि पश्चिम बंगाल में महिलाएं राजनीतिक रूप से अधिक जागरूक तो हैं ही, वे चुनाव में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। साल 2011 के चुनाव में 84.45 प्रतिशत महिला मतदाताओं ने वोट किया था तो साल 2016 के चुनाव में 83.13 प्रतिशत। दोनों ही बार इनके मतदान का प्रतिशत पुरुषों के मतदान प्रतिशत से थोड़ा ज़्यादा ही था।
चुनाव के कई मुद्दे होंगे, महिला सुरक्षा या सशक्तीकरण एक मात्र मुद्दा नहीं है। लेकिन इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरने में टीएमसी कामयाब है और ऐसा बीजेपी नेताओं की अपनी सोच और ग़लत प्राथमिकताओं की वजह से है।
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