कोलकाता स्थित भवानीपुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की जीत लगभग पक्की थी, इसके बावजूद लोगों की निगाहें इस सीट पर टिकी हुई थीं।
इसका कारण यह है कि इस उपचुनाव का राजनीतिक असर पूरे देश पर पड़ सकता है। तृणमूल कांग्रेस इस मौके का फ़ायदा उठा कर ममता बनर्जी को नरेंद्र मोदी के मुकाबले विपक्ष के संभावित नेता के रूप में पेश कर सकती है।
पैर पसार रही है टीएमसी
पश्चिम बंगाल में सिमटी पार्टी का दूसरे राज्यों में कोई ख़ास असर नहीं है। पर वह जिस तरह त्रिपुरा और असम के बाद अब गोवा में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने या पैर पसारने की रणनीति पर काम कर रही है, उससे बीजेपी की परेशानी बढ़ सकती है। यही तृणमूल कांग्रेस की जीत है।
भवानीपुर से जीत का मतलब
भवानीपुर में लगभग 57 प्रतिशत मतदान हुआ और ममता बनर्जी ने लगभग 59 हज़ार वोटों के अंतर से बीजेपी उम्मीदवार को हराया।
इसके पहले यानी 2011 के उपचुनाव में उन्होंने 54 हज़ार वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। उसके बाद 2016 में उनकी जीत का अंतर 25 हज़ार वोट था। साफ है उनकी जीत का अंतर कम हो गया था।
इस साल यानी 2021 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने 29 हज़ार वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी।
भवानीपुर वह इलाक़ा है, जहाँ ग़ैर-बंगालियों की तादाद लगभग 45 प्रतिशत है। मोटे तौर पर भद्र इलाक़ा कहे जाने वाले इस क्षेत्र में बिहार-उत्तर प्रदेश से आए ग़रीब लोगों की बस्तियाँ भी हैं।
कोठियों और बड़े फ्लैटों में रहने वाले अभिजात्य समाज में मतदान प्रतिशत कम रहा है और ग़रीब- गुरबों ने बढ़ चढ़ कर वोट दिया है, यह वहाँ हमेशा से होता आया है। इस बार भी हुआ है।
ममता बनर्जी की जीत का अंतर यह साबित करता है कि उन्हें ग़ैर बंगालियों के बड़े तबके ने वोट दिया है। यानी, वह बंगाल की मुख्यमंत्री होते हुए भी सिर्फ बंगालियों की नेता नहीं हैं।
राजनीतिक समीकरण
देश के दूसरे हिस्सों में पैर पसारने की कोशिश में लगी तृणमूल कांग्रेस को इससे रणनीतिक लाभ होगा। इसे राज्य सरकार के मंत्री फ़िरहाद हक़ीम के बयान से समझा जा सकता है।
उन्होंने चुनाव नतीजों के एलान के बाद कहा, "भवानीपुर में ममता बनर्जी की जीत कोई मुद्दा नहीं थी। हमारा लक्ष्य जीत के अंतर को बढ़ाना और भवानीपुर से पूरे देश को संदेश देना था। टीएमसी को इसमें भारी कामयाबी मिली है।"
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अब हमारा लक्ष्य वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को दिल्ली की कुर्सी से हटाना है। वही असली जीत होगी।
फ़िरहाद हक़ीम, नेता, तृणमूल कांग्रेस
'असली जीत'
फ़िरहाद हक़ीम जिसे 'असली जीत' बता रहे हैं, उसे समझने के लिए एक बार ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस की कुछ कोशिशों पर नज़र डालते हैं।
ममता बनर्जी बीते दिनों नई दिल्ली आई थीं और उन्होंने कई विपक्षी नेताओं से मुलाकात की थी। इसमें शरद पवार, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव और दूसरे नेता शामिल थे। उन्होंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी से भी मुलाक़ात की थी।
विपक्ष की नेता
हालांकि उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ जनता अपना नेता चुनेगी और वे तो अपनी पार्टी की एक सामान्य कार्यकर्ता हैं, पर विपक्षी नेता के लिए उनकी दावेदारी साफ थी।
इसके बाद तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुदीप बंद्योपाध्याय ने कहा था कि राहुल गांधी विपक्ष के स्वीकृत नेता नहीं हैं और कांग्रेस को अभी यह दावा नहीं करना चाहिए।
मतलब साफ है, टीएमसी अपनी नेता यानी ममता बनर्जी को इस पोजीशन के लिए तैयार कर रही है।
लेकिन इसमें सबसे बड़ी रुकावट यह थी कि ममता बनर्जी निर्वाचित सदस्य नहीं थीं और उनका मुख्यमंत्री पद ख़तरे में था क्योंकि चुनाव हुए नहीं थे और उन्हें 3 नवंबर तक हर हाल में किसी सदन का सदस्य बन जाना था। ऐसा नहीं होने पर उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ता।
हालांकि वे इसके बाद छह महीने के लिये एक बार फिर मुख्यमंत्री बन सकती थीं, पर यह उनकी प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं होता और प्रधानमंत्री पद के दावेदार की प्रतिष्ठा के अनुकूल तो एकदम नहीं होता। ममता बनर्जी के लिए भवानीपुर का उपचुनाव इस लिहाज से अधिक महत्वपूर्ण था।
अब जबकि ममता बनर्जी ने बड़े अंतर से यह चुनाव जीत लिया है, उनका राजनीतिक कद तो बढ़ा ही है, विपक्ष की नेता के रूप में भी उनका दावा पहले से अधिक मजबूत हुआ है।
साल 2024 के आम चुनाव में क्या होगा, उसके पहले का राजनीतिक समीकरण कैसा होगा और टीएमसी व ममता बनर्जी की उसमें क्या स्थिति होगी, इस पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।
पर यह साफ है कि भवानीपुर के मतदाता, जिनमें हिन्दी भाषी भी हैं, ने उन्हें आगे बढ़ने का संकेत दे दिया है।
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