सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फिल्म 'द केरल स्टोरी' पर पश्चिम बंगाल सरकार के प्रतिबंध पर रोक लगा दी। इसके साथ ही इसने कहा कि फ़िल्म के प्रदर्शन के दौरान क़ानून और व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है। एक हफ़्ते पहले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में 'द केरल स्टोरी' पर प्रतिबंध लगाने के फैसले पर पश्चिम बंगाल सरकार की खिंचाई की थी।
पश्चिम बंगाल में इस फिल्म के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद इसके निर्माताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इसी मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह फ़ैसला दिया। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कानून और व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार का कर्तव्य है क्योंकि फिल्म को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड यानी सीबीएफसी द्वारा प्रमाणन प्रदान किया गया है।
ट्रेलर रिलीज होने के बाद से ही विवादों में घिरी फिल्म को कई राज्यों में कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। दक्षिणपंथी विचारधारा वाले कई लोग इस फ़िल्म की तारीफ़ कर रहे हैं तो कई इसको समुदायों के बीच 'नफ़रत फैलाने वाली बाहियात' फ़िल्म क़रार दे रहे हैं। अधिकतर फ़िल्म समीक्षकों ने भी इसको अव्वल दर्जे की बदतर फिल्म बताया है। इसी बीच पश्चिम बंगाल सरकार ने 8 मई को 'द केरल स्टोरी' पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी।
बंगाल की मुख्यमंत्री ने राज्य के मुख्य सचिव को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि फिल्म को राज्य में चल रहे स्क्रीन से हटा दिया जाए।
द केरल स्टोरी केरल में कथित धार्मिक शिक्षा के इर्द-गिर्द केंद्रित है। फिल्म में दावा किया गया है कि कैसे कट्टरपंथी इस्लामिक मौलवियों द्वारा हिंदू और ईसाई महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है। फिल्म का दावा है कि इन महिलाओं को इस्लाम में धर्मांतरित किया गया और बाद में इस्लाम के लिए लड़ने के लिए अफगानिस्तान, यमन और सीरिया जैसे देशों में भेजा गया।
सुदीप्तो सेन निर्देशित इस फिल्म पर तब और विवाद बढ़ गया था जब कथित तौर पर इसमें यह दावा किया गया कि केरल में 32,000 महिलाओं को इस्लाम में परिवर्तित होने के लिए मजबूर किया गया था, और वे आईएसआईएस में शामिल हो गईं।
बहरहाल, पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के ख़िलाफ़ सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया, 'प्रथम दृष्टया हमारा मानना है कि हमारे सामने आई सामग्री के आधार पर पश्चिम बंगाल द्वारा प्रतिबंध मान्य नहीं है। इस प्रकार फिल्म पर प्रतिबंध लगाने के आदेश पर रोक लगाई जाती है।'
फिल्म के सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन के प्रमाणन को चुनौती देने वाली याचिका पर अदालत ने कहा कि इसे गर्मी की छुट्टियों के बाद जुलाई में सूचीबद्ध किया जाएगा, क्योंकि उसे पहले फिल्म देखनी होगी। फिल्म के निर्माता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि राज्य किसी फिल्म को प्रमाणन देने के खिलाफ अपील नहीं कर सकते हैं। हालाँकि वह फिल्म के काल्पनिक होने के बारे में डिस्क्लेमर की व्यवस्था करने पर सहमत हुए हैं।
बता दें कि इस फिल्म को लेकर मुख्य तौर पर विवाद 'लव जिहाद' जैसे दावों को लेकर हुआ है। केरल में सत्तारूढ़ सीपीआई (एम) और विपक्षी कांग्रेस के अनुसार, फिल्म में झूठा दावा किया गया है कि 32,000 महिलाओं का धर्मांतरण और कट्टरपंथीकरण किया गया और उन्हें भारत व दुनिया भर में आतंकवादी मिशनों में तैनात किया गया।
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने फिल्म निर्माताओं को यह कहते हुए फटकार लगाई थी कि वे 'लव जिहाद' का मुद्दा उठाकर राज्य को धार्मिक उग्रवाद के केंद्र के रूप में पेश करने के संघ परिवार के प्रचार को आगे बढ़ा रहे हैं। पिनाराई विजयन ने यह भी कहा कि द केरल स्टोरी का ट्रेलर, पहली नज़र में, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा करने और राज्य के खिलाफ नफरत फैलाने के कथित उद्देश्य से जानबूझकर बनाया गया लगता है।
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