नये कृषि क़ानूनों पर किसान आंदोलन में हिंसा के बीच पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने उन क़ानूनों के ख़िलाफ़ विधानसभा में प्रस्ताव पेश किया है। इन क़ानूनों को किसान विरोधी क़रार दिया गया है और इसको वापस लेने की माँग की है। अगले कुछ महीनों में ही विधानसभा चुनाव होने जा रहे इस राज्य में नये कृषि क़ानून राजनीतिक मुद्दा भी बनने की संभावना है।
विपक्षी दलों के नेतृत्व वाली राज्य सरकारें नये कृषि क़ानूनों को किसान विरोधी बताते रहे हैं। अब तक ऐसे कम से कम पाँच राज्य अपनी-अपनी विधानसभाओं में कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास कर चुके हैं। ऐसे प्रस्ताव पास करने वालों में पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान, केरल और दिल्ली की सरकारें शामिल हैं।
अब पश्चिम बंगाल में इसकी तैयारी है। राज्य के संसदीय कार्य मंत्री पार्थ चटर्जी ने तीन सुधार क़ानूनों को 'किसान विरोधी' और कॉर्पोरेट्स के लिए अनुकूल बताया।
प्रस्ताव में कहा गया है कि क़ानून एक ऐसी स्थिति पैदा करेंगे जहाँ सरकार को कृषि उत्पादों की खरीद को रोकने के लिए मजबूर किया जाएगा, जिससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली ध्वस्त हो जाएगी और जमाखोरी और कालाबाजारी में तेज़ी आएगी।
सदन में जैसे ही प्रस्ताव को पेश किया गया बीजेपी विधायकों ने हंगामा कर दिया। वे सदन में वेल के पास पहुँच गए और बाद में 'जय श्री राम' के नारे लगाते हुए उन्होंने सदन से वाक आउट किया।
बीजेपी विधायकों के विरोध के बीच ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, 'बीजेपी हमेशा हर आंदोलन को आतंकवादी गतिविधि के रूप में बताती है। क़ानून पूरी तरह से किसान विरोधी हैं। उन्होंने इसे (संसद में) बर्बरतापूर्वक बल का इस्तेमाल करके लाया। हम किसानों को देशद्रोही क़रार नहीं देंगे।'
ममता ने इन क़ानूनों को निरस्त करने का सरकार से आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री को सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए।
बता दें कि इससे पहले केरल की विधानसभा में भी ऐसा ही प्रस्ताव लाया गया था और 2020 के आख़िरी दिन उसे पास भी कर दिया गया था।
केंद्र सरकार के जिन तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसान प्रदर्शन कर रहे हैं उन्हीं क़ानूनों के ख़िलाफ़ केरल की विधानसभा ने एक प्रस्ताव पास कर दिया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि केंद्र सरकार इन विवादास्पद क़ानूनों को वापस ले जिन्हें जल्दबाज़ी में संसद द्वारा लागू किया गया। केरल की पिनराई विजयन की सरकार ने किसानों के मुद्दे पर चर्चा के लिए एक घंटे के लिए विशेष सत्र बुलाया था। विजयन की सरकार विधानसभा का सत्र काफ़ी पहले बुलाना चाहते थे, लेकिन राज्यपाल ने पहले सत्र बुलाने की मंजूरी नहीं दी थी। इस पर काफ़ी विवाद भी हुआ था। लेकिन बाद में राज्यपाल ने इस सत्र के लिए सहमति जताई।
इससे पहले विपक्षी दलों द्वारा शासित पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान, और दिल्ली में भी ऐसे ही प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं। हालाँकि, इन प्रस्ताव से उन क़ानूनों पर कुछ असर नहीं पड़ेगा, लेकिन राजनीतिक रूप से केंद्र की बीजेपी सरकार पर असर पड़ेगा।
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