यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि क्या मुसलिम तुष्टिकरण के आरोपों की काट के साथ ही बीजेपी के हिंदू-हिंदी वोटों के धुव्रीकरण की कोशिशों से निपटने के दोहरा लक्ष्य हासिल करने के लिए ही उन्होंने यह दांव चला है?
क्या है मामला?
कहा जा रहा है चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके की सलाह पर ही ममता ने यह फ़ैसला किया है।तुष्टिकरण?
वर्ष 2011 में राज्य की सत्ता में आने साल भर बाद ही ममता ने इमामों को ढाई हजार रुपए का मासिक भत्ता देने का एलान किया था। उनके इस फ़ैसले की काफी आलोचना की गई थी। कलकत्ता हाईकोर्ट की आलोचना के बाद अब इस भत्ते को वक़्फ़ बोर्ड के जरिए दिया जाता है। इसके बाद बीते साल उन्होंने 28 सौ दुर्गापूजा समितियों को दस-दस हज़ार रुपए की आर्थिक सहायता दी थी। तब भी उनकी आलोचना हुई थी।बीजेपी अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने बीते सप्ताह ही तृणमूल कांग्रेस सरकार पर हिंदू-विरोधी सोच रखने और मुसलिम तुष्टिकरण की नीति पर चलने का आरोप दोहराया था। उसके दो दिन बाद ही ममता ने पुरोहितों को मासिक भत्ता और मकान देने का एलान किया। उनके इन फैसलों को नड्डा के आरोपों से भी जोड़ कर देखा जा रहा है।
बीजेपी का हमला
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ औऱ बीजेपी समेत दूसरे दल भी इन फ़ैसलों की आलोचना कर रहे हैं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं,“
'तृणमूल कांग्रेस बंगाल में बीजेपी के बढ़ते असर से डर गई है। इसी वजह से उन्होंने हिंदू और हिंदी भाषियों के वोटरों को लुभाने के लिए तमाम फ़ैसले किए हैं। लेकिन राज्य के लोग इस सरकार की हक़ीक़त समझ गए हैं। उनको अब ऐसा चारा फेंक कर मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।'
दिलीप घोष, अध्यक्ष, पश्चिम बंगाल बीजेपी
संघ के वरिष्ठ नेता जिष्णु बसु का कहना है कि अगर सरकार हिंदुओं की सहायता ही करना चाहती थी तो वह राज्य के विभिन्न इलाक़ो में हिंसा में मरने वालों के परिजनों को सहायता दे सकती थी। राज्य में हिदुंओं का वज़ूद ही ख़तरे में है।
सीपीआईएम ने की आलोचना
सीपीआईएम के नेताओं ने भी ममता पर सांप्रदायिकता की राह पर चल कर बीजेपी और संघ के एजंडे को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। सुजन चक्रवर्ती कहते हैं, 'बंगाल में बीजेपी की पैठ की वजह तृणणूल कांग्रेस ही है। सरकार अब असली मुद्दों को भुला कर सत्ता के मोह में सांप्रदायिकता की राह पर चलने लगी है।'ममता बनर्जी इससे पहले हमेशा बंगाली अस्मिता और संस्कृति की बात उठाती रही हैं। पहली बार उन्होंने हिंदी भाषियों और दलितों का सवाल उठाया है। राज्य के कई इलाकों में हिंदी भाषियों की भारी तादाद है और कई सीटों पर उनके वोट ही निर्णायक हैं।
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