हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
जीत
हेमंत सोरेन
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बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार
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पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा पर सियासत का रंग तो कोई दो दशक पहले से ही घुलने लगा था। लेकिन इस साल यह रंग कुछ ज्यादा ही चटख नजर आ रहा है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पूजा पर राजनीति होने लगी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आयोजन समितियों को 50-50 हजार रुपये की मदद तो दी ही है, पहले के फैसले से पलटते हुए उन्होंने पूजा के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन की भी अनुमति दे दी है।
दूसरी ओर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुर्गा पूजा की शुरुआत के दिन यानी षष्ठी (22 अक्टूबर) को ‘पूजा की बात’ के जरिए लोगों को संबोधित करेंगे। इससे साफ है कि सत्ता के दोनों दावेदारों ने इस त्योहार को अपने सियासी लाभ के लिए भुनाने की खातिर कमर कस ली है।
विधानसभा चुनाव से पहले हो रही इस दुर्गा पूजा में अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आयोजन समितियों को कई तरह की छूट दी है। इनमें करीब 37 सौ आयोजन समितियों को 50 हजार रुपये के आर्थिक अनुदान के अलावा बिजली में 50 फीसदी छूट और फायर ब्रिगेड की सुविधा मुफ्त देने का एलान किया गया है। इसके साथ ही इस साल नगरपालिका या ग्राम पंचायतें आयोजन समितियों से कोई टैक्स भी नहीं लेंगी।
बंगाल में पूजा के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन की भी परंपरा रही है। पहले तो सरकार ने कोरोना के कारण इस पर रोक लगा दी थी। लेकिन अब ममता ने इसकी अनुमति दे दी है। बस शर्त यह है कि इनका आयोजन पूजा पंडालों से दूर करना होगा। ऐसे कार्यक्रमों में दो सौ लोग शामिल हो सकेंगे।
बीते साल लोकसभा चुनावों में मिली भारी कामयाबी के बाद पार्टी ने पूजा के दौरान पूरे राज्य में तीन हजार से ज्यादा स्टॉल लगाए थे। वहां से पार्टी की नीतियों और नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस यानी एनआरसी की ख़ूबियों के अलावा तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सरकार की कथित हिंसा और नाकामियों का प्रचार किया गया था।
बंगाल में वाम मोर्चा सरकार के 34 वर्षों के शासनकाल में दुर्गा पूजा राजनीति से काफ़ी हद तक परे थी। पूजा में वामपंथी नेता सक्रिय हिस्सेदारी से दूर रहते थे। हां, आयोजन समितियों में सुभाष चक्रवर्ती जैसे कुछ नेता ज़रूर शामिल होते थे। लेकिन उनका मक़सद चंदा और विज्ञापन दिलाना ही था।
दुर्गा पूजा में सीपीएम भले प्रत्यक्ष रूप से कभी शामिल नहीं रही, लेकिन इस त्योहार के दौरान वह भी हज़ारों की तादाद में स्टॉल लगाकर पार्टी की नीतियों औऱ उसकी अगुवाई वाली सरकार की उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार करती थी। वैसे, अब वह इस मामले में काफी पिछड़ गई है। उसकी जगह अब बीजेपी ने ले ली है।
वर्ष 2011 में टीएमसी के भारी बहुमत के साथ जीत कर सत्ता में आने के बाद इस त्योहार पर सियासत का रंग चढ़ने लगा। धीरे-धीरे महानगर समेत राज्य की तमाम प्रमुख आयोजन समितियों पर टीएमसी के बड़े नेता काबिज़ हो गए। अब हालत यह है कि करोड़ों के बजट वाली ऐसी कोई पूजा समिति नहीं है जिसमें अध्यक्ष या संरक्षक के तौर पर पार्टी का कोई बड़ा नेता या मंत्री न हो।
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हमारे लिए दुर्गा पूजा बांग्ला संस्कृति, विरासत और इतिहास का अभिन्न हिस्सा है। पार्टी इसे उत्सव के तौर पर मनाती है। लेकिन बीजेपी धर्म के नाम पर आम लोगों को बांटने का प्रयास कर रही है।
पार्थ चटर्जी, महासचिव, टीएमसी
दूसरी ओर, बीजेपी भी अब अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए दुर्गा पूजा का ठीक उसी तरह इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है जैसा तृणमूल ने सत्ता में आने के बाद किया था।
प्रदेश बीजेपी के नेता प्रताप बनर्जी कहते हैं, "टीएमसी के लोग पूजा समितियों में दूसरे राजनीतिक दलों के लोगों को शामिल नहीं होने देते। इसकी वजह सियासी भी है और वित्तीय भी। बावजूद इसके कई पूजा समितियों ने बीते साल बीजेपी के शीर्ष नेताओं को पंडालों के उद्घाटन का न्योता दिया था।" संघ के प्रवक्ता जिष्णु बसु कहते हैं, "दुर्गा पूजा बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार है। ऐसे में पार्टी ख़ुद को इससे दूर कैसे रख सकती है?''
टीएमसी के वरिष्ठ नेता और पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी ख़ुद कोलकाता की प्रमुख आयोजन समिति एकडालिया एवरग्रीन के अध्यक्ष हैं। उनका आरोप है कि बीजेपी दुर्गा पूजा का सियासी इस्तेमाल करना चाहती है। लेकिन त्योहारों को राजनीति से परे रखना चाहिए। वह कहते हैं, "टीएमसी दुर्गा पूजा के नाम पर राजनीति नहीं करती। लेकिन बीजेपी ने अब धर्म और दुर्गा पूजा के नाम पर सियासत शुरू कर दी है।"
बीजेपी ने उल्टे टीएमसी पर पूजा को सियासी रंग में रंगने का आरोप लगाया है। प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "टीएमसी ने ही इस उत्सव को अपनी पार्टी के कार्यक्रम में बदल दिया है।" उनका कहना है कि ममता बनर्जी के सत्ता में आने से पहले तक दुर्गा पूजा महज एक धार्मिक और सामाजिक उत्सव था। लेकिन मुख्यमंत्री ने इसे एक राजनीतिक मंच में बदल दिया है।
कोरोना की वजह से ममता बनर्जी 15 से 17 अक्तूबर के बीच राज्य सचिवालय से ही वर्चुअल तरीके से पूजा पंडालों का उद्घाटन करेंगी। सत्ता में आने के बाद वे हर साल औसतन सौ या उससे ज्यादा पंडालों का उद्घाटन करती रही हैं। पूजा की सियासत का किसे कितना फायदा मिलेगा, यह तो बाद में पता चलेगा। लेकिन पिलहाल सत्ता के दावेदारों ने इसे अपने हित में भुनाने की मुहिम तो तेज कर ही दी है।About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
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