पश्चिम बंगाल में 27 मार्च को पहले चरण के लिये मतदान हुआ था। तब से अब तक कोरोना के मरीज़ों की संख्या में 40 गुना इज़ाफ़ा हुआ है। यह आँकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। राज्य की राजधानी कोलकाता का हाल तो और बुरा है। वहाँ महामारी से ग्रस्त होने के सारे रिकार्ड टूट रहे हैं।
केंद्र सरकार के आँकड़ों के हिसाब से कोलकाता में हर दूसरा आदमी कोरोना से प्रभावित है। यानी कोरोना पॉजिटिविटी दर 50% हो गयी है, जो देश के किसी भी इलाक़े में सर्वाधिक है। कोरोना महामारी के प्रसार की दर इस वक़्त बंगाल में देश में सबसे अधिक है। गृह मंत्रालय के अनुसार बंगाल में कोरोना प्रसार दर 9.5% है। बंगाल के बाद कर्नाटक का नंबर है जहाँ ये आँकड़ा 9% है।
क्यों हुआ इतना बुरा हाल?
सवाल यह उठता है कि पश्चिम बंगाल की इतनी बुरी गत क्यों हुई। सत्य हिंदी के पाठकों को याद होगा कि गृह मंत्री अमित शाह ने इस बात से साफ़ इंकार किया था कि चुनाव की वजह से बंगाल में कोरोना फैला है। उनका जवाब बेहद ग़ैर ज़िम्मेदाराना और विज्ञान समझ से परे था। उन्होंने कहा था कि अगर चुनाव से कोरोना फैला है तो महाराष्ट्र में कोरोना सबसे अधिक क्यों फैला, वहाँ तो चुनाव नहीं हो रहे थे। अब शायद उन्हें अपने कहे पर पछतावा हो रहा होगा।
बंगाल में सभी दलों के नेताओं ने चुनाव जीतने को प्राथमिकता दी। और चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित नियमों की धज्जियाँ उड़ायी गईं। जिन लोगों ने कोरोना प्रोटोकॉल की बात की, उनका खुलेआम मज़ाक़ उड़ाया गया।
मोदी की रैलियों में क्या हुआ?
प्रधानमंत्री मोदी हो गृहमंत्री अमित शाह या फिर ममता बनर्जी या दूसरे बड़े नेता किसी ने अपनी रैलियों में सोशल डिस्टैंसिंग का पालन नहीं करवाया। लोगों को मास्क पहनने के लिये नहीं कहा। पूरा ज़ोर भीड़ इकठ्टा करने पर था।बड़े बड़े रोड शो किये गये। जहाँ बिना मास्क के नेता और कार्यकर्ता एक दूसरे से सट कर चलते देखे गये।
कोरोना के संदर्भ में प्रधानमंत्री खुद कहते रहे हैं कि 'दो गज दूरी है ज़रूरी।' यह नारा सिर्फ़ नारा ही रहा, खुद प्रधानमंत्री की रैली में इसका एक बार भी पालन नहीं किया गया।
रैली रद्द करने वालों का मजाक
राहुल गांधी ने जब चुनावी रैलियों को रद्द करने का बात की तो बीजेपी के नेताओं ने उनका मज़ाक़ उड़ाया। उन्होंने कहा कि राहुल की रैलियों में तो लोग ही नहीं आते। लेकिन बीजेपी के नेताओं को अब अपनी बेवक़ूफ़ी पर शर्म आनी चाहिए।
इस दौरान चुनाव आयोग की भूमिका भी बेहद शर्मनाक रही। उसने काग़ज़ पर आचार संहिता बना उसका पालन करने का कोई कोशिश नहीं की। यहाँ तक कोलकाता हाईकोर्ट की कड़ी डाँट फटकार के बाद भी उसने चुनावी रैलियों पर रोक लगाने जैसा कदम नहीं उठाया।
चेन्नई हाईकोर्ट ने तो यहाँ तक कहा कि कोरोना फैलने के लिये अक़ेले आयोग ज़िम्मेदार है और आयोग के अधिकारियों के ख़िलाफ़ हत्या का मुक़दमा दर्ज होना चाहिये। लेकिन अफ़सोस कि अब आयोग की ख़ामियों का खमियाजा पूरे बंगाल को भुगतना पड़ेगा और हज़ारों लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ेगी।
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