‘हमारे घर में बेटे की शादी से संबंधित विवाद चल रहा था। तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेता शेख आज़ाद रहमान ने इसके निपटारे के लिए एक सालिसी सभा बुलाई थी। उसमें हमारा पहुँचना अनिवार्य बताया गया था। साथ ही धमकी दी गई थी कि अगर हम वहां हाजिर नहीं हुए तो हमारे साथ मारपीट और लूटपाट की जाएगी। इस डर से हमने रातों रात अपने पशुओं के साथ गाँव छोड़ दिया।’
यह आपबीती है पूर्व बर्दवान जिले के जमालपुर थाना इलाक़े के दुर्गम गांव कुबराजपुर के रहने वाले शेख बुरहान अली और उनकी पत्नी शहानारा बीबी की।
बंगाल में सालिसी सभाओं का मतलब तालिबानी तर्ज पर आयोजित की जाने वाली कंगारू अदालतों से है जहां तुरंत मामले की सुनवाई कर सजा सुनाई जाती है और उस पर अमल भी कर दिया जाता है। बीते एक महीने के दौरान ऐसी कम से कम आधा दर्जन घटनाएं सामने आई हैं। बंगाल में जितनी जगह ऐसी कंगारू अदालत का आयोजन हो रहा है उनमें तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेता ही शामिल हैं। वाममोर्चा के दौर में सीपीएम के नेता इसमें शामिल रहते थे।
राज्य में सालिसी सभा या कंगारू अदालतों का इतिहास बहुत पुराना है। पूरे देश में भले कानून और सरकार का शासन चलता हो, पश्चिम बंगाल के इस इलाके में तो सालिसी सभा यानी कंगारू अदालतों का ही हुक्म सर्वोपरि है। इसके फ़ैसले को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। यह अदालत खुद फैसला करती है और खुद ही मौके पर सजा भी दे देती है। राज्य के विभिन्न इलाकों से अक्सर ऐसी ख़बरें सामने आती हैं और कुछ दिनो में दब जाती हैं या दबा दी जाती हैं।
राज्य के ग्रामीण इलाकों में संपत्ति से पारिवारिक विवाद तक सबकुछ इन स्थानीय अदालतों में ही निपटाया जाता है।
जून के आखिरी सप्ताह में उत्तर दिनाजपुर जिले के चोपड़ा में ऐसी एक सभा में सजा देने वाला वीडियो वायरल होने के बाद राज्य की राजनीति में इस मुद्दे पर उथल-पुथल शुरू हो गई है। लेकिन इसके बाद सरकार, पुलिस व प्रशासन की सख्ती के बावजूद कम से कम चार ऐसी घटनाएँ सामने आ चुकी हैं। जानकारों का कहना है कि ऐसी घटनाएँ आम हैं। लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी के स्थानीय नेताओं के आतंक के कारण ऐसे मामले सामने नहीं आ पाते। इन घटनाओं को सामने लाने वालों को भी सजा भुगतनी पड़ती है। मिसाल के तौर पर चोपड़ा की घटना का वीडियो वायरल करने वाले दो युवकों को भी 50-50 हजार का जुर्माना भरना पड़ा था।
इसी महीने मुर्शिदाबाद ज़िले की एक अन्य सालिसी सभा में स्थानीय नेताओं ने अशीफुल शेख उर्फ टोनी नामक एक युवक पर पांच हजार रुपए का जुर्माना लगाया था। उसके इनकार करने पर उसके साथ मारपीट की गई। उसने अस्पताल में दम तोड़ दिया। पुलिस ने इस मामले के मुख्य अभियुक्त अब्दुल रकीब को झारखंड के पाकुड़ से गिरफ्तार किया है।
बीते सप्ताह कोलकाता से सटे हावड़ा जिले के सांकराइल में भी ऐसी ही एक घटना घटी। यहाँ एक व्यापारी शहाबुद्दीन और उनकी पत्नी के बीच कुछ दिनों से जारी विवाद को निपटाने के लिए तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने एक सालिसी सभा बुलाई थी। उसमें उन दोनों के साथ मारपीट की गई। लेकिन पुलिस ने अब तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की है। हावड़ा जिले के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नाम नहीं छापने पर कहते हैं कि जब तक कोई शिकायत नहीं मिले, पुलिस कुछ नहीं कर सकती।
इस्लामपुर के पुलिस अधीक्षक जॉबी थॉमस के. कहते हैं कि इलाक़े में कहीं से ऐसी कोई शिकायत मिलने पर फौरन कार्रवाई की जाती है। वायरल वीडियो के मामले में भी अभियुक्त जेल में है।
चोपड़ा की घटना में सरेआम मार खाते हुए जिस प्रेमी युगल अंसार और पीड़िता मेहरूनिशा का वीडियो वायरल हुआ था उनके बयान से समझा जा सकता है कि उस इलाके में दबंग नेताओं का कितना आतंक है। वायरल वीडियो में नजर आने वाली महिला ने ताजिमनूल की बजाय उल्टे वीडियो वायरल करने वालों के ख़िलाफ़ थाने में शिकायत की है और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। जबकि युवक ने भी कहा है कि पूरे मामले में उसकी ग़लती थी। सालिसी सभा के ज़रिए विवाद निपट गया है। उसे किसी से कोई शिकायत नहीं है।
पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में विवादों के निपटारे के लिए सालिसी सभा का आयोजन कोई नया नहीं है। लेकिन हाल के वर्षों में इसके फ़ैसलों के बेहद ख़तरनाक होने की वजह से राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चिंता बढ़ती जा रही है। वैसे, ज़्यादातर मामलों में पुलिस या सत्तारूढ़ पार्टी के नेता ऐसे फैसलों को सालिसी सभा के फैसलों की बजाय गांव वालों का आपसी विवाद बता कर पल्ला झाड़ते रहे हैं।
मिसाल के तौर पर उत्तर दिनाजपुर जिले के चोपड़ा में तृणमूल कांग्रेस के जिस स्थानीय नेता ताजिमूल इस्लाम को गिरफ्तार किया गया है उसे स्थानीय विधायक हमीदुल रहमान का करीबी बताया जाता है। अपने क्रूर फैसलों के लिए ताजिमूल इलाके में जेसीबी के नाम से कुख्यात रहा है।
इस्लामपुर में सीपीएम के जिला सचिव अनवारुल हक कहते हैं कि लक्ष्मीपुर पंचायत का पूरा इलाका जेसीबी और उसकी टीम के नियंत्रण में था। राजनीतिक संरक्षण की वजह से पूरे इलाके में उसका समानांतर प्रशासन चलता था। उसके आतंक और धमकियों के कारण ही मार खाने वाले प्रेमी युगल ने अपने बयान बदल दिए हैं।
सिलीगुड़ी से सटे फूलबाड़ी इलाके में एक विवाहित महिला अपने प्रेमी के संग फरार हो गई थी। कुछ दिनों बाद घर लौटने पर उसे सालिसी सभा में पेश होना पड़ा। वहां भरी सभा में उसके साथ स्थानीय दबंगों ने मारपीट की। अपना अपमान सहन नहीं कर पाने के कारण उस महिला ने आत्महत्या कर ली।
लेकिन चोपड़ा की घटना ने ही इस समस्या की गंभीरता उजागर की है। उसके बाद तृणमूल कांग्रेस ने दोषी से दूरी बरतते हुए अभियुक्त को पार्टी से निकाल दिया। स्थानीय विधायक हमीदुल रहमान को भी कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। ममता बनर्जी ने खुद पुलिस के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक में ऐसी सभाओं पर रोक लगाने का निर्देश दिया था। बावजूद इसके इस समस्या पर अंकुश नहीं लग पा रहा है।
तृणमूल कांग्रेस के नेता निर्बेद राय कहते हैं कि यह समस्या राजनीतिक नहीं है। इसके पीछे इलाक़े पर वर्चस्व कायम करने की मंशा काम करती है। इसे पार्टी का समर्थन नहीं है। स्थानीय नेता शीर्ष नेताओं की सहमति के बिना ही अपनी ताक़त दिखाते रहे हैं। सामने आने के बाद दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होती रही है। तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि सालिसी सभाओं का आयोजन वाममोर्चा के शासनकाल के समय से ही होता रहा है। सीपीएम ने पंचायतों को राजनीतिक रंग दे दिया था।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार भी यही आरोप लगाते हैं। लेकिन उनका आरोप है कि इस मामले में तृणमूल कांग्रेस ने तमाम हदें पार कर दी हैं। वो कहते हैं कि अगर वाममोर्चा के जमाने में ऐसा होता तो इसका मतलब यह नहीं है कि तृणमूल कांग्रेस के शासनकाल में भी ऐसे फ़ैसले स्वीकार करने होंगे। वह दावा करते हैं कि तृणमूल कांग्रेस के शासनकाल में सालिसी सभा का चेहरा बदल गया है। अब दोषियों को बचाने के लिए भी ऐसी सभाएं आयोजित की जाती हैं। पुलिस व प्रशासन की सहायता से पीड़ितों को ही सजा दी जाती है।
सीपीएम के प्रदेश सचिव मोहम्मद सलीम का कहना है कि जो लोग वाममोर्चा को सालिसी सभा की शुरुआत का ज़िम्मेदार बता रहे हैं उनको या तो इतिहास की जानकारी नहीं है या फिर वो इतिहास को विकृत कर रहे हैं। ब्रिटिश शासनकाल में कर्ज सालिसी बोर्ड था। इसमें महाजन से कर्ज लेकर उसे नहीं चुकाने से संबंधित तमाम विवाद गांव के गणमान्य लोग आपस में बैठ कर निपटाते थे। वाममोर्चा के दौर में तो पंचायती व्यवस्था के ज़रिए लोकतांत्रिक ढांचे को मज़बूत करने की कवायद शुरू की गई थी।
समाजशास्त्र के प्रोफेसर रहे डॉ. मनोज कुमार गांगुली कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में छोटे-मोटे विवादों के निपटारे के मकसद से शुरू की गई सालिसी सभा का चाल और चरित्र अब पहले के मुक़ाबले काफ़ी बदल गया है। अब यह आतंक का पर्याय बन चुकी हैं। इन पर रोक लगाना ही समाज के हित में होगा।
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