‘हमारे घर में बेटे की शादी से संबंधित विवाद चल रहा था। तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेता शेख आज़ाद रहमान ने इसके निपटारे के लिए एक सालिसी सभा बुलाई थी। उसमें हमारा पहुँचना अनिवार्य बताया गया था। साथ ही धमकी दी गई थी कि अगर हम वहां हाजिर नहीं हुए तो हमारे साथ मारपीट और लूटपाट की जाएगी। इस डर से हमने रातों रात अपने पशुओं के साथ गाँव छोड़ दिया।’
जानें, बंगाल के कंगारू कोर्ट को जहाँ दलीलें नहीं, दंड ही विधान है!
- पश्चिम बंगाल
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- 17 Jul, 2024

जून के आखिरी सप्ताह में उत्तर दिनाजपुर जिले के चोपड़ा में ऐसी एक सभा में प्रेमी युगल को सजा देने वाला वीडियो वायरल हुआ था। इस घटना के बाद राज्य की राजनीति में बवाल मच गया था। जानिए, आख़िर ऐसी सजा देने की प्रथा के पीछे वजह क्या है।
यह आपबीती है पूर्व बर्दवान जिले के जमालपुर थाना इलाक़े के दुर्गम गांव कुबराजपुर के रहने वाले शेख बुरहान अली और उनकी पत्नी शहानारा बीबी की।
बंगाल में सालिसी सभाओं का मतलब तालिबानी तर्ज पर आयोजित की जाने वाली कंगारू अदालतों से है जहां तुरंत मामले की सुनवाई कर सजा सुनाई जाती है और उस पर अमल भी कर दिया जाता है। बीते एक महीने के दौरान ऐसी कम से कम आधा दर्जन घटनाएं सामने आई हैं। बंगाल में जितनी जगह ऐसी कंगारू अदालत का आयोजन हो रहा है उनमें तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेता ही शामिल हैं। वाममोर्चा के दौर में सीपीएम के नेता इसमें शामिल रहते थे।