गए हफ़्ते हमने क्षमा के भाव पर बात शुरू की थी। इस बीच काफ़ी कुछ हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने प्रशांत भूषण को बताया है कि अपनी ग़लती मान लेने से कोई छोटा नहीं हो जाता। इस प्रसंग में, जैसा भारत में हर प्रसंग में करने का रिवाज है, न्यायमूर्ति ने महात्मा गाँधी का सहारा लिया। कहा कि वह अक्सर क्षमा माँग लिया करते थे। दूसरों के लिए भी माफ़ी माँगते थे।
प्रशांत भूषण अवमानना मामला: सर्वोच्च न्यायालय में गाँधी का नामजाप क्यों?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 31 Aug, 2020

चौरी चौरा के बाद आन्दोलन वापस लेना और अपने लोगों की हिंसा की आलोचना करना गाँधी के ही बस की बात थी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी हिंसा के विरोध में पिछले कुछ वर्षों में कुछ कहा हो, याद नहीं आता! फिर सर्वोच्च न्यायालय में गाँधी का नामजाप क्यों?
न्यायमूर्ति अवकाश मिलने के बाद गाँधी को पढ़ने का वक़्त पा सकेंगे। तब उन्हें मालूम होगा कि गाँधी अक्सर माफ़ी नहीं माँगा करते थे क्योंकि उनके निर्णय हड़बड़ी में नहीं लिए जाते थे। उनका एक-एक शब्द विचारा हुआ होता था। क्या गाँधी ने कभी अपने शब्द वापस लिए थे? इरादा उनका किसी को तकलीफ़ पहुँचाने का, अपमानित करने का कभी नहीं रहा, लेकिन मौक़ा पड़ने पर गाँधी का स्वर सख़्त भी हो जाया करता था। ख़ासकर तब जब उन्हें सभ्यता और शान्ति का पाठ पढ़ाने की कोशिश अँगरेज़ हुकूमत करती थी। अपने भारतीय विरोधियों या अन्य आलोचकों के साथ बात करते हुए गाँधी ने विनम्रता कभी नहीं छोड़ी, लेकिन अपनी जगह से हिले भी नहीं। जैसे जिन्ना के साथ या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा के सदस्यों के साथ बहस में। यह न हुआ कि आधा रास्ता चलकर वह उनकी ‘पोजीशन’ की तरफ़ बढ़ने को राज़ी हो गए हों। उनके मित्रों ने यों ही नहीं उन्हें एक तरह का जिद्दी इंसान कहा है। जैसे भारत आने के तुरत बाद जब अपने आश्रम में दूधा भाई के परिवार के रहने को लेकर उनका अपने स्वजनों से ही मतभेद हुआ तो गाँधी ने उनकी भावनाओं का क़तई ख़्याल नहीं किया। उन्होंने उन सबको आश्रम छोड़ देने तक के लिए कह दिया, उनको तुष्ट करने के लिए क्षमा नहीं माँगी। उसी प्रकार अपने उपवासों में राजाजी हों या उनके पुत्र देवदास गाँधी, सबको उन्होंने दुखी किया। गाँधी ज़रा मुश्किल शै हैं।