भारत की सड़कों पर ख़ून है। यह उसकी औलादों का ख़ून है। ज़्यादातर उनका जिन्हें पिछले बरसों में बाबर की औलाद कहकर बेइज़्ज़त करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा गया है। बाबर की आख़िरी औलादों में से एक बहादुरशाह ज़फ़र के हिंदुस्तान में रहने से इतना ख़ौफ़ था अंग्रेज़ों को कि उन्हें जलावतन करके रंगून में आख़िरी वक़्त बिताने को मजबूर किया गया। कभी भारत की आज़ादी की पहली जंग के सिपाहियों ने बाबर की औलाद को अपना सरपरस्त बनाया था। आज इस आज़ादी का फल खा रहे वे लोग, जिनके वैचारिक पुरखों ने कभी इस आग में हाथ नहीं जलाए, बाबर की औलादों को गाली देते घूम रहे हैं।