भारत की सड़कों पर ख़ून है। यह उसकी औलादों का ख़ून है। ज़्यादातर उनका जिन्हें पिछले बरसों में बाबर की औलाद कहकर बेइज़्ज़त करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा गया है। बाबर की आख़िरी औलादों में से एक बहादुरशाह ज़फ़र के हिंदुस्तान में रहने से इतना ख़ौफ़ था अंग्रेज़ों को कि उन्हें जलावतन करके रंगून में आख़िरी वक़्त बिताने को मजबूर किया गया। कभी भारत की आज़ादी की पहली जंग के सिपाहियों ने बाबर की औलाद को अपना सरपरस्त बनाया था। आज इस आज़ादी का फल खा रहे वे लोग, जिनके वैचारिक पुरखों ने कभी इस आग में हाथ नहीं जलाए, बाबर की औलादों को गाली देते घूम रहे हैं।
मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा और अपमान सीमा पार कर गया है
- वक़्त-बेवक़्त
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- 23 Dec, 2019

नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ मुसलमान मुंबई में भी निकले, कोलकाता में भी और हैदराबाद में भी। वहाँ हिंसा क्यों नहीं हुई? क्यों भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों में हुई? क्या यह सिर्फ़ मुसलमान का मामला है? क्या मेरे सामने किसी और को बेइज़्ज़त किया जा रहा हो तो मुझे ख़ामोश रहना चाहिए? क्या उसके बाद भी मैं इंसान रह जाऊँगा?
सड़क पर ख़ून है। मैंने कहा यह हिंद के बच्चों का ख़ून है। यह ख़ून अपना हिसाब माँगेगा और वह सरकार को करना ही पड़ेगा। जो यह नारा लगाकर सरकार में पहुँचे थे, हालाँकि उस वक़्त भी वे झूठ बोल रहे थे कि वे सबका साथ लेकर सबका विकास करेंगे, आज उनके नुमाइंदे कह रहे हैं कि जो लोग सड़क पर हैं, वे एक वर्ग विशेष के लोग हैं। इसलिए उन्हें बहुत परेशान होने की ज़रूरत नहीं क्योंकि यह वर्ग विशेष कभी उनके साथ नहीं रहा है।