22 जनवरी विजय और पराजय, दोनों का ही दिन है। यह बहुसंख्यकवाद के बल की विजय और धर्मनिरपेक्षता की पराजय का क्षण है। यह भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता के प्राण हरण का क्षण भी है। राज्य की सारी संस्थाएँ अपने सारे संसाधनों के साथ राम मंदिर के उद्घाटन में जुटी हुई हैं और प्रधानमंत्री ख़ुद उसका नेतृत्व कर रहे हैं। यह सब देखते हुए भारत को धर्मनिरपेक्ष कहना सिर्फ़ ख़ुद को भुलावा देना है।