22 जनवरी विजय और पराजय, दोनों का ही दिन है। यह बहुसंख्यकवाद के बल की विजय और धर्मनिरपेक्षता की पराजय का क्षण है। यह भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता के प्राण हरण का क्षण भी है। राज्य की सारी संस्थाएँ अपने सारे संसाधनों के साथ राम मंदिर के उद्घाटन में जुटी हुई हैं और प्रधानमंत्री ख़ुद उसका नेतृत्व कर रहे हैं। यह सब देखते हुए भारत को धर्मनिरपेक्ष कहना सिर्फ़ ख़ुद को भुलावा देना है।
धर्मनिरपेक्षता ग़लत साबित नहीं हुई है!
- वक़्त-बेवक़्त
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- 29 Mar, 2025

क्या यह बहुसंख्यकवाद के बल की विजय और धर्मनिरपेक्षता की पराजय का क्षण है? सत्ताधीशों के इवेंट के बाद क्या भारत धर्मनिरपेक्ष बचा रह गया है? क्या यह जनतांत्रिक भ्रम का क्षण है? कुछ ऐसे ही जरूरी सवालों को उठाता हुआ, प्रसिद्ध चिंतक और स्तंभकार अपूर्वानंद का यह लेख। यह लेख इसलिए पढ़िए और पढ़ाइए कि लोगों की उम्मीदें इस जनतंत्र से बरकरार हैं। ऐसा न हो कि बाद में पछताना पड़े।