पढ़ाई करने को यूक्रेन गए हुए छात्र वापस देश लौट रहे हैं। वे छोटे -छोटे तिरंगे लहरा रहे हैं। वे 'भारत माता की जय' और 'वंदे मातरम' के नारे लगा रहे हैं। अपने प्राण भर बच जाने की राहत से देश भक्ति उमड़ पड़ती है। इस देश भक्ति और स्वार्थपरता के बीच के सीधे रिश्ते का इससे बेहतर उदाहरण नहीं मिल सकता।
आख़िर, यूक्रेन के साथ क्यों नहीं खड़ा है भारत?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 28 Feb, 2022

ठीक है कि रूस मित्र देश है, तो वह तो यूक्रेन भी है। रूस ज़्यादा ताकतवर है, क्या यही तर्क हमें उसके हमले की आलोचना करने से रोक रहा है? सुरक्षा परिषद् में भी आक्रमण के लिए रूस की निंदा के प्रस्ताव पर वोट देने से बच निकलने से भी भारत की सिद्धांतहीनता का ही पता चलता है।
एक मित्र ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि लौट रहे छात्रों में किसी ने यूक्रेन पर रूसी हमले का विरोध करना तो दूर उसपर दुःख भी जाहिर नहीं किया। किसी छात्र ने नहीं कहा कि ठीक है कि वह सुरक्षित है लेकिन उसे अपने साथ पढ़नेवाले, पढ़ानेवाले और काम करनेवाले यूक्रेनी लोगों की चिंता है।
जिस देश ने उन्हें पढ़ने को जगह दी जबकि अपने देश में मौक़ा नहीं था, उसके संकट में पड़ने पर सहानुभूति का एक शब्द पहली प्रतिक्रिया में न निकल पाना उस स्वार्थी राष्ट्रवाद का दूसरा पहलू है जो इस घड़ी 'भारत माता' की जय जयकार में व्यक्त हो रहा था।