नई लोकसभा के लिए 2024 के चुनाव के दौरान बार-बार रोहित वेमुला की याद आती रही। इसकी बड़ी वजह यह है कि इस बार चुनाव-प्रचार में जो शब्द सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किए गए, उनमें अनुसूचित जाति, जनजाति, या दलित और आदिवासी जैसे शब्द सबसे अधिक सुनाई पड़े। भारतीय जनता पार्टी के मुख्य प्रचारक नरेंद्र मोदी ने, जो संयोग से भारत के प्रधानमंत्री भी हैं, सबसे पहले इन समुदायों के हितों के प्रति चिंता ज़ाहिर की। उनके इशारे को समझकर भाजपा के सारे नेताओं ने चिल्ला-चिल्लाकर कहा कि उन्हें डर है कि कांग्रेस पार्टीवाले इन दलित और आदिवासी समुदायों के हिस्से के संसाधनों का अपहरण कर लेंगे और उन्हें मुसलमानों को बाँट देंगे। यह हिस्सा मुख्य रूप से आरक्षण के रूप में इन्हें मिल रहा है। भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस इनका आरक्षण लेकर मुसलमानों को दे देगी।
रोहित वेमुला को दलित होने का अधिकार भी नहीं है?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 27 May, 2024

जिनकी याददाश्त ठीक है वे जानते हैं कि रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद भाजपा के नेताओं ने, जिनमें स्मृति ईरानी सबसे मुखर थीं, बार-बार रोहित पर इल्ज़ाम लगाया कि वह झूठ बोल रहा था कि वह दलित था। रोहित की माँ को भी झूठा साबित करने की कोशिश की गई थी।
जब यह शोर गुल चल रहा था, तेलंगाना की पुलिस रोहित वेमुला की आत्महत्या से मृत्यु के मामले को बंद करने की प्रक्रिया के आख़िरी दौर में थी। उसका कहना था कि रोहित वेमुला ने ख़ुद से ही, ख़ुद की तैयार की गई स्थितियों से परेशान होकर आत्महत्या की थी। लेकिन उसके साथ पुलिस ने यह भी कहा कि असल में बात यह थी कि रोहित वेमुला ने अपनी जाति के बारे में अपनी माँ के साथ मिलकर झूठ गढ़ा था कि वह दलित है। पुलिस के मुताबिक़, रोहित को दलित नहीं माना जा सकता है क्योंकि उसके पिता ‘अन्य पिछड़ी जाति’ समुदाय के हैं। रोहित की माँ ज़रूर दलित हैं लेकिन उससे रोहित की जाति तय नहीं होती। पुलिस के अनुसार रोहित के लिए इस झूठ को चलाए रखना कठिन हो रहा था। अलावा इसके पढ़ाई-लिखाई से ज़्यादा वे कुछ और कर रहे थे। इन सबने मिलकर ऐसे हालात पैदा कर दिए जिनका सामना रोहित नहीं कर पाए और उन्होंने आत्महत्या कर ली।