“2,15,523: मेरे पिता भी आख़िर इस संख्या में शामिल हो गए”।
हिंदुओं को आँकड़ों में बदलने का षड्यंत्र क्या है? क्यों है?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 3 May, 2021

हिंदुओं को आँकड़ों में बदल कर या उन्हें मात्र एक जनसंख्यात्मक समूह की इकाई में शेष करके उन्हें व्यक्ति के तौर पर किसी अधिकार की इच्छा से वंचित किया जा रहा है। जब कोई मुख्यमंत्री कहता है कि आँकड़ों का खेल न खेलें, इससे मुर्दा ज़िंदा नहीं हो जाएँगे तो वह क्या कहना चाहता है? क्यों मारे जा रहे लोग गिनती में नहीं लिए जा रहे हैं? आप मुझे किसी गिनती में शामिल ही नहीं करेंगे तो मेरा वजूद क्या होगा?
यह ट्वीट सिर्फ़ यहाँ तक नहीं। पिता की मृत्यु की सूचना का यह तरीक़ा नाटकीय प्रतीत हो सकता है। लेकिन बेटे ने ट्वीट की आगे की कड़ियाँ पढ़ने का अनुरोध उनसे किया जिनकी नज़र इस सूचना पर पड़ी होगी। यह संख्या जाहिर है उन लोगों की है जो उस क्षण तक भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद हस्पताल न मिलने, ऑक्सीजन के लिए भटकते हुए, दवा के अभाव में मारे गए।
अपने पिता को साँस की इस जद्दोजहद में खोने के बाद बेटे की इच्छा है कि लोग जानें कि वे 2,15,523 में से सिर्फ एक संख्या नहीं। उसने बतलाया कि उसके पिता वायुसेना में मिग लड़ाका विमान उड़ानेवाले कुशल और बहादुर पाइलट थे। लेकिन वे बेटे के सबसे अच्छे दोस्त भी थे। ऐसे पिता जिन्होंने अपने बेटे के प्रेम प्रसंग पर भृकुटी नहीं तानी बल्कि उसे सुगम बनाने में मदद की। बेटे के होनेवाले सास-ससुर की हिचकिचाहट को उनसे मिलकर दूर किया। वह जो सरकारी खाते में या इस महामारी का विश्लेषण करनेवालों के लिए महज एक संख्या है, वह प्रेम से धड़कता हुआ दिल था, बेटा यह बताना चाहता है। वह अनुरोध करता है कि आप थोड़ा वक़्त उसकी ट्वीट की कड़ियों को पढ़ने में लगाएँ। बचपन से बेटे की अलग-अलग उम्र में पिता के उसके साथ की तस्वीरों को देखकर उस अभाव को महसूस करें जो बेटे के जीवन में स्थायी हो गया है।