कल रात से एक वीडियो तेज़ी से घूम रहा है। त्रिपुरा के एक विवाह समारोह का है। एक उत्साही प्रशासनिक अधिकारी विवाह स्थल पर पहुँच कर रुखाई से सबको विवाह स्थल से हाँक कर बाहर निकाल रहा है। त्रिपुरा में कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए बड़े जमावड़े पर पाबंदी है। अधिकारी सरकार के आदेश का पालन कर रहा है। स्वर में अनुरोध नहीं है, आदेश है। भारत के किसी भी प्रकार के शक्तियुक्त अभिजन का सहजगुण! तरीके की आलोचना करें लेकिन वह बेचारा तो संक्रमण रोकने के लिए जारी सरकारी आदेश को लागू कर रहा था।
जो सरकार बार बार पीड़ा देती है, उसे हटा देना चाहिए!
- विचार
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- 29 Apr, 2021

परपीड़ा की राजनीति फल देती है। वह निष्क्रिय पीड़कों के समाज का निर्माण करती है। वह पीड़ा की वैधता भी स्थापित करती है। एक हिस्से को पीड़ित होते रहना होगा जिससे एक बड़े समुदाय को आनंद मिल सके। एक छोटी अवधि तक पीड़ित होना होगा, जिससे चिरकाल का सुख मिल सके। जो पीड़ा की शिकायत करता है, उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है।
वीडियो जारी होते ही भीषण प्रतिक्रिया हुई। विवाह जैसे पवित्र संस्कार को इस प्रकार भंग करने की धृष्टता करने की हिम्मत इस अधिकारी की हुई कैसे? ख़बर मिली कि उसे निलम्बित कर दिया गया। इतना ही नहीं एक दूसरे वीडियो में वह माफी माँगता हुआ भी दिख रहा है।
विवाह जैसे संस्कार के अनुष्ठान को भंग करना भारत में, कम से कम हिंदुओं के प्रसंग में, पाप से कम नहीं।