2024 बीत गया। हम नए साल की दहलीज़ पर हैं। साल नया होगा लेकिन क्या किसी भी नएपन की आशा है? इस सवाल पर विचार करता हूँ तो लगता है कि पिछले 10 साल से हम तक़रीबन एक ही साल जी रहे हैं।भारत में हम पिछले 10 साल से नए की प्रतीक्षा कर रहे हैं और वह नज़र नहीं आता। या शायद मैं ग़लत कह रहा हूँ। वह इसलिए कि नएपन का भाव प्रायः सकारात्मकता से जोड़ा जाता है। लेकिन नया हमेशा ऐसा ही क्यों हो? क्रूरता, हिंसा और दमन में भी नयापन हो सकता है। वह नए रूप धर कर हमें चकित कर सकती है। दमन और हिंसा इस तरीक़े से भी की जा सकती है, यह हम अचरज से सोचते रह जा सकते हैं।
नया सालः हारे नहीं हैं, हम फिर उठ खड़े होंगे अत्याचार से लड़ने के लिए
- वक़्त-बेवक़्त
- |
- |
- 29 Mar, 2025

नये साल के जश्न में आप डूब चुके होंगे। लेकिन क्या वाकई नये साल में कुछ नया है। पिछले 10 वर्षों में वो नया साल नहीं आया, जिसमें अच्छे दिन आने का वादा था। हमें कुछ और मिला। क्या क्रूरता, हिंसा और दमन के इस दौर में नयापन हो भी सकता है। स्तंभकार और प्रसिद्ध चिंतक अपूर्वानंद ने नये साल की आमद पर नया नजरिया पेश किया है। जरूर पढ़िये और पढ़ाइयेः