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नया सालः हारे नहीं हैं, हम फिर उठ खड़े होंगे अत्याचार से लड़ने के लिए

2024 बीत गया। हम नए साल की दहलीज़ पर हैं। साल नया होगा लेकिन क्या किसी भी नएपन की आशा है? इस  सवाल  पर विचार करता हूँ तो लगता है कि पिछले 10 साल से हम तक़रीबन एक ही साल जी रहे हैं।भारत में हम पिछले 10 साल से नए की प्रतीक्षा कर रहे हैं और वह नज़र नहीं आता। या शायद  मैं ग़लत कह रहा हूँ। वह इसलिए कि नएपन का भाव  प्रायः  सकारात्मकता से जोड़ा जाता है। लेकिन नया हमेशा ऐसा ही क्यों हो? क्रूरता, हिंसा और दमन में भी नयापन हो सकता है। वह नए रूप धर कर हमें चकित कर सकती है। दमन और हिंसा इस तरीक़े से भी की जा सकती है, यह  हम अचरज से सोचते रह जा सकते हैं।  
इस साल के आख़ीर की आख़िरी खबरों में से एक है पटना में एक कार्यक्रम में गाँधी के ‘भजन रघुपति राघव राजा राम’ में ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ गाने पर गायिका देवी पर हमला। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों की मौजूदगी में इस पंक्ति को गाते ही विरोध शुरू हो गया और जय श्रीराम के नारे लगने लगे। उनमें से एक नेता ने मंच पर आकर देवी को हटाया और ख़ुद जय श्रीराम के नारे लगाने लगे। भारतीय जनता पार्टी के लिहाज़ से भी शायद यह पतन का नया रूप था। हम सोचते हैं कि वह दुनिया को तो यह न दिखलाना चाहेगी कि वह इतनी गिरी हुई है। लेकिन हमारा सोचना ही ग़लत हो सकता है।या संभवतः यह पतन भी नया नहीं है। कोई 10 साल पहले दिल्ली में ‘गाँधी स्मृति’ संस्था में गाँधी के भजन से ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ की जगह जय श्रीराम , जय श्रीराम गाया गया था। तब इस नएपन की तरफ़ हमारा ध्यान नहीं गया था। 
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देवी को धमकियाँ मिल रही हैं। कहा जा रहा है जहाँ गाँधी को भेजा था, वहीं तुम्हें भेज देंगे। देवी इस बात को सार्वजनिक तौर पर कह रही है।देवी का यह साहस आज के लिहाज़ से नया है।बिना किसी सांगठनिक समर्थन के अगर कोई एक व्यक्ति आज भी विवेक और सौहार्द की बात कर पा रहा है तो इसे नया ही माना जाना चाहिए।
संभल हिंदुत्ववादी हिंसा का एक नया रूप है। आने वाले दिनों में देश के दूसरे हिस्सों में इसे दुहराए जाते देखा जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने मस्जिद के सर्वेक्षण पर जब रोक लगाई तब प्रशासन ने मुसलमानों को प्रताड़ित करने का नया तरीक़ा खोजा। अगर घर पूरे नहीं  ध्वस्त किए जा सकते तो सीढ़ियाँ तो तोड़ी जा सकती हैं। सीढ़ियाँ जो नाले और घर के बीच हैं। घर से निकलना तो दूभर किया जा सकता है। और कुछ नहीं तो बिजली चोरी के नाम पर बिजली कनेक्शन काटा जा सकता है। मुसलमान सांसद के घर पर सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों  के साथ छापा मारा जा सकता है।मुसलमान समुदाय में आतंक फैलाने, उसे अपमानित करने का यह नया तरीक़ा है। इसे कौन अदालत रोक सकती है? 
New Year: We are not defeated, we will rise again to fight tyranny - Satya Hindi
संभल हिंसा की तस्वीर। आरोप है कि पुलिस ने संभल में एकतरफा कार्रवाई की। फाइल फोटो।
मस्जिद तोड़ी नहीं जा सकती  तो उसे चारों तरफ़ से घेरा तो जा ही सकता है। संभल की शाही मस्जिद के सामने बड़ी पुलिस चौकी बनाई जा रही है। उसे घेरा जा रहा है।उसके इर्द गिर्द खुदाई की जा रही है। मुसलमानों को मारा नहीं जा सकता तो घेरा तो जा ही सकता है।
मस्जिद को मंदिर बनाने के अभियान पर अगर अदालत ने अभी रोक लगा दी तो क्या हुआ? हिंदुओं को उपलब्धि का आनंद दिलाने के लिए पुराने, बंद पड़े मंदिरों का जीर्णोद्धार  प्रशासन कर रहा है। यह काम अब भाजपा नहीं कर रही, विश्व हिंदू परिषद नहीं कर रही। ज़िला प्रशासन और  पुलिस कर रही है। एक नए हिंदू युग का इस प्रकार आविष्कार किया जा रहा है। यह नया जो पहले से था, दबा था, या दबा दिया गया था!
New Year: We are not defeated, we will rise again to fight tyranny - Satya Hindi
जौनपुर की अटाला मस्जिद
मुसलमानों को प्रताड़ित करने का एक तरीक़ा असम के मुख्यमंत्री ने खोजा कि हिंदू धार्मिक स्थलों के 5 किलोमीटर के दायरे में माँस की बिक्री नहीं होगी। यह एक नया तरीक़ा था। जैसे पुलिस हिरासत में लोगों की टाँग पर गोली मारकर उन्हें ज़ख़्मी करना। अब यह उत्तर प्रदेश और असम और दूसरे राज्यों में भी क़ायदा बनता जा रहा है। 
जो आज नया है वह धीरे धीरे आदत में बदल जाता है।वर्षांत में ही बड़ा दिन मनाया जाता है। इस रोज़ गिरिजाघरों में घुसकर हमला करने, उनके बाहर हनुमान चालीसा गाने की बात 10 साल पहले कोई सोच भी नहीं सकता था। जब यह शुरू हुआ तो हिंदुओं ने भी इसे आश्चर्य से देखा। लेकिन अब हर 25 दिसंबर के बाद हम गिनती करते हैं कि पूरे देश में ऐसी कितनी घटनाएँ हुईं।जैसे हिंदू इसकी याद नहीं कर सकते कि 10 साल पहले उनमें से कोई नमाज़ पढ़ते हुए मुसलमानों पर हमला करेगा। लेकिन अब यह हिंदू समाज के लिए आम होता जा रहा है।
जब हिंसा हो या हिंसा का प्रचार हो तो उसकी शिकायत करना जुर्म है या नहीं? पहले हम मानते थे कि घृणा और हिंसा की तरफ़ ध्यान दिलाना हमारा फर्ज है। अब पुलिस कहती है कि हिंसा की शिकायत से हिंसा पैदा होती है। अदालतें भी पूछती हैं कि आख़िर तुमने सरेआम हिंसा का ज़िक्र क्यों किया? यह तर्क नया है। लेकिन क्या अब यह नया रह गया है?  
विश्वविद्यालयों में गोशाला बनाने की बात भी नई थी। दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों ने जब गाय पालना शुरू किया तो लोगों ने विस्मय से देखा। लेकिन अब यह भी अभ्यास बनता जा रहा है। पिछले महीने खबर पढ़ी कि सूरत में एक विश्वविद्यालय ने गोशाला बनाने का निर्णय लिया है क्योंकि उससे परिसर का वातावरण शुद्ध होगा और प्रेतात्माएँ दूर रहेंगी। 
यह जब शुरू हुआ, नया था और हास्यास्पद था लेकिन अब यह हमारा स्वीकृत सामाजिक अभ्यास है।
ऐसे कितने ‘नए’ हम नए साल में देखेंगे कहना कठिन है। लेकिन मूर्खता, घृणा, हिंसा, अत्याचार के नए रूपों के अंदेशे से हम क्या निष्क्रिय हो जाएँ? क्या हम यह मानकर ख़ामोश हो जाएँ तो यह तो होता ही रहता है?
रघुवीर सहाय की कविता ‘भविष्य’ याद आती है:
“वहाँ तुम कह रहे हो यह तो होता ही  है
यह जो समझ है इतिहास की भ्रष्ट है
यह अत्याचार को शाश्वत रखने की
अन्यायी भाषा है जिसके प्रतिष्ठान में विद्या बंद है
विद्या जो हमें मुक्त करती है वह विद्या
होगा ही अत्याचार और होता रहेगा
यह केवल इतना ही सच है कि हारे हैं
हारे हैं हार भी रहे हैं हम बार-बार
इस वक्त आज अभी फिर हारे
और यह स्वीकार करना कि हारे हैं
हर बार ताक़त नहीं दे रहा”
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और हमें ताक़त चाहिए।नए साल में और भी:ज़िंदा रहने की और अत्याचार से लड़ने की क्योंकि वही जीवन है। 
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अपूर्वानंद
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