2024 बीत गया। हम नए साल की दहलीज़ पर हैं। साल नया होगा लेकिन क्या किसी भी नएपन की आशा है? इस  सवाल  पर विचार करता हूँ तो लगता है कि पिछले 10 साल से हम तक़रीबन एक ही साल जी रहे हैं।भारत में हम पिछले 10 साल से नए की प्रतीक्षा कर रहे हैं और वह नज़र नहीं आता। या शायद  मैं ग़लत कह रहा हूँ। वह इसलिए कि नएपन का भाव  प्रायः  सकारात्मकता से जोड़ा जाता है। लेकिन नया हमेशा ऐसा ही क्यों हो? क्रूरता, हिंसा और दमन में भी नयापन हो सकता है। वह नए रूप धर कर हमें चकित कर सकती है। दमन और हिंसा इस तरीक़े से भी की जा सकती है, यह  हम अचरज से सोचते रह जा सकते हैं।