नये साल के जश्न में आप डूब चुके होंगे। लेकिन क्या वाकई नये साल में कुछ नया है। पिछले 10 वर्षों में वो नया साल नहीं आया, जिसमें अच्छे दिन आने का वादा था। हमें कुछ और मिला। क्या क्रूरता, हिंसा और दमन के इस दौर में नयापन हो भी सकता है। स्तंभकार और प्रसिद्ध चिंतक अपूर्वानंद ने नये साल की आमद पर नया नजरिया पेश किया है। जरूर पढ़िये और पढ़ाइयेः