राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल में कहा कि लोगों को जोड़ने का काम राजनीति पर नहीं छोड़ा जा सकता। क्या इसका आशय यह भी है कि राजनीति विभिन्न समुदायों को जोड़ने की जगह तोड़ने का काम करती है? इसलिए वह काम, यानी लोगों को क़रीब लाने का किसी और को करना चाहिए? किसको? क्या वह काम संघ कर रहा है या उसे करना चाहिए? और यह उन्होंने क्यों कहा होगा?
बीजेपी की विभाजनकारी राजनीति को सही ठहराना चाहते हैं भागवत!
- वक़्त-बेवक़्त
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- 12 Jul, 2021

मोहन भागवत की बात का आशय लेकिन और गंभीर है। वह राजनीति को नैतिकता से रहित कार्रवाई मानने को कह रहे हैं। यह कह कर कि राजनीति का स्वभाव ही यह है, वे वास्तव में अपने दल, यानी बीजेपी की विभेदकारी हिंसक राजनीति का औचित्य साधन करना चाहते हैं।
राजनीति का स्वभाव विभेद पैदा करना है, द्वंद्व पैदा करना है। उसी द्वंद्व या विभेद के आधार पर वह समर्थकों की गोलबंदी करती है। या इसे इस तरह भी समझें कि अगर मुझे अपने लिए समर्थक जुटाने हैं तो मुझे अनिवार्य रूप से एक शत्रु समूह की कल्पना करनी पड़ेगी जिसके मुक़ाबले अपने समूह को सुरक्षा का आश्वासन देकर मैं उसे अपनी तरफ़ आकर्षित कर सकूँगा।