‘लिखोलिखो किमैं एक मियाँ हूँएनआरसी में मेरा सीरियल नंबर है 200543
एनआरसी का दर्द: ‘मैं एक मियाँ हूँ’ लिखना क्या अपराध है?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 22 Jul, 2019

कविता लिखने पर एफ़आईआर क्यों दर्ज की गई? क्या इसका संबंध राष्ट्रीय नागरिकता सूची से नहीं है? यदि नागरिकता के क़ानून में संशोधन का क़ानून बन गया तो मुसलमानों के अलावा सारे लोग जो राष्ट्रीय नागरिकता सूची से बाहर हैं, भारतीय नागरिकता के पात्र होंगे। इसका अर्थ यही है कि राष्ट्रीय नागरिकता सूची बनाने का मक़सद मुसलमानों को संदिग्ध बनाकर उन्हें कैंपों में डाल देने का है।
मेरे दो बच्चे हैं
और तीसरा आनेवाला है
अगली गर्मियों में
क्या तुम उससे भी नफ़रत करोगे
जैसे मुझसे करते हो?’
हाफ़िज़ अहमद की इस कविता को पढ़कर क्या आप पुलिस स्टेशन के लिए रवाना हो जाएँगे? क्या इस कविता में किसी के ख़िलाफ़ नफ़रत व्यक्त हुई है? या, क्या आप इसपर सोचने की कोशिश करेंगे कि कविता का तुम कौन है? कहीं वह आप ही तो नहीं? या, आपका दिल होगा कवि से पूछने का कि उसकी इस आशंका की वजह क्या है? उसके लिए यह सीरियल नम्बर क्यों उसकी पहचान है और क्या आप अपना परिचय इस तरह देने की मजबूरी महसूस करते हैं?
इस तरह के सवाल तो मन में उठ सकते हैं लेकिन क्या यह कविता किसी पाठक के मन में किसी हिंसा को जन्म देती है? लेकिन हाफ़िज़ को इन पंक्तियों को लिखने के लिए सज़ा मिल रही है। उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराई गई है। सिर्फ़ उनके नहीं, आठ और साथी कवियों के ख़िलाफ़ भी। वे सब जो ख़ुद को मियाँ कवि कहते हैं।
शायद यह कहा जाए कि मैं कविता आधी-अधूरी उद्धृत कर रहा हूँ। तो आगे का हिस्सा भी पढ़ें,