2 अक्टूबर की शाम भी ढल रही है। विश्वविद्यालय परिसर में सन्नाटा था। आज हमें विभाग या विश्वविद्यालय की तरफ़ से कोई बुलावा भी नहीं आया। 2 अक्टूबर को राजकीय अवकाश है न ? फिर बुलावा क्यों?
गांधी के नाम पर झूठ और पाखंड क्यों?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 3 Oct, 2022

8 साल गुजर गए हैं। अब संस्थान 2 अक्टूबर और स्वच्छता के इस नाटक को भी भूल गए हैं। किसी कुलपति, किसी मंत्री, किसी प्रधानमंत्री की झाड़ू के साथ तस्वीर जारी करना आवश्यक नहीं समझा गया है। इस बीच अनेक नए दिवस, नए नाटक प्रस्तावित किए जा चुके हैं।
8 साल पहले की बात है। भारत में एक नया सवेरा हुआ था। लाल क़िले से घोषणा हुई कि भारत में स्वच्छता अभियान चलाया जाएगा। इस राजकीय अभियान के लिए गाँधी से बेहतर “ब्रांड ऐंबेसेडर” और कौन हो सकता था ?
उनके विचारों से विरोध के बावजूद स्वाधीनता के पहले स्वच्छता का उनका संदेश सत्ता को रास आ गया था। आख़िर यह भारत है। वही भारत जिसमें राम के प्राणांतक आक्रमण के कारण मृत्यु की प्रतीक्षा करते रावण से शिक्षा लेने के लिए राम ने लक्ष्मण को भेजा था। जब रावण से सीखा जा सकता था तो गाँधी से भी सीखा ही जा सकता है।