महाराष्ट्र में आख़िरकार भारतीय जनता पार्टी जीत गई। कैसे, यह प्रश्न अप्रासंगिक है। जीतना ही असल बात है। जीत ही परम सत्य है। जीत ही नैतिकता है। जो जीतता है, वही सच्चा और नैतिक है। जीतना आज के जमाने का धर्म है। जो पिछड़ गया, वह मूर्ख है। अगर वह जीतने के तरीक़े पर साल उठाने लगे, तो उसे आज की हिंदी में लूज़र कहा जाने लगता है।
महाराष्ट्र: जीत ही नैतिकता है! कैसे का सवाल अप्रासंगिक
- वक़्त-बेवक़्त
- |
- |
- 25 Nov, 2019

महाराष्ट्र में इतना हो हल्ला क्यों है? जिन्हें पत्रकार और विश्लेषक प्यार और भीतिपूर्ण आदर से आज के दौर का ‘चाणक्य’ कहने लगे हैं, उन्होंने कहा था, हमारा तरीक़ा है, साम दाम दंड भेद। मुझे पाँच साल पहले 2014 के अंत की याद आई। एक फ़िल्म की। नाम था, हैपी न्यू ईयर। यह 2015 के स्वागत में बनी फ़िल्म थी। 2014 के अंत में यह फ़िल्म बनी थी। हम 2019 के आख़िरी दिनों में हैं। क्या बदला है?
जो लोग महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने पर हाहाकार कर रहे हैं, वे लगता है अपने समय के नैतिक मानदंड को भूल गए हैं। जिन्हें पत्रकार और विश्लेषक प्यार और भीतिपूर्ण आदर से आज के दौर का ‘चाणक्य’ कहने लगे हैं, उन्होंने कहा था, हमारा तरीक़ा है, साम दाम दंड भेद। आख़िर यह भारतीय परंपरा सम्मत आचरण का विधान है। हमारा दौर भारतीय परंपराओं के पुनरुद्धार का दौर है। यह ग़लत है कि इस पावन सिद्धांत का अंग्रेज़ी तर्जुमा आप यह करें, ‘बाई हुक और बाई क्रुक।’