भारत के लोगों के लिए साहस इतना अपरिचित होता जा रहा है कि सूरज उगने पर दिन होता है जैसी बात कहना भी भारी साहस का प्रमाण माना जाने लगा है। ऐसी स्थिति में अगर कोई व्यक्ति तथ्य कथन से आगे बढ़कर अपनी राय दे और वह भी ऐसी जो राजकीय राय से भिन्न हो, तो वह दुस्साहस की श्रेणी में आएगा। और वह और भी बड़ा दुस्साहस है अगर वह व्यक्ति कोई अधिकारी है। यानी वह ऐसे पद पर है जिसके लिए राज्य की कृपा बनी रहनी चाहिए।
केंद्रीय प्रवेश परीक्षा: क्यों जेएनयू की कुलपति को सुनना ज़रूरी है?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 22 Aug, 2022

कुलपति का कहना है कि वे सरकार से अनुरोध करेंगी कि वह प्रवेश पद्धति में बदलाव करे। लेकिन जैसा अध्यापकों ने ध्यान दिलाया, इसकी ज़रूरत नहीं है। यह पूरी तरह विश्वविद्यालय का अधिकार है कि वह इस केंद्रीय परीक्षा से निकलकर अपनी प्रवेश परीक्षा ख़ुद आयोजित करे। अपने अधिकार को स्वतः छोड़ देना, अपनी स्वायत्तता स्वयं ही किसी के हवाले कर देना : यह सत्ता की मदद करना ही है।
इसीलिए जब यह सुना कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की कुलपति ने स्नातकोत्तर (एम.ए.) कक्षाओं के लिए राष्ट्रीय संयुक्त केंद्रीय प्रवेश परीक्षा की पद्धति पर संदेह व्यक्त किया तो हैरानी हुई। क्या वे हमारे बीच की ही अध्यापक प्रशासक हैं या कहीं और की हैं!
ध्यान रहे, कुलपति ने इस संयुक्त परीक्षा का विरोध नहीं किया, वे मात्र उसके तरीक़े में तब्दीली के लिए संघीय सरकार से अनुरोध कर रही हैं।