जवाहरलाल नेहरू और भगत सिंह का क्या रिश्ता हो सकता है? एक समय था कि दोनों ही भारत के युवाओं के हृदय सम्राट माने जाते थे। नेहरू और भगत सिंह समकालीन थे लेकिन नेहरू उम्र और राजनीतिक या सार्वजनिक अनुभव में भगत सिंह से बड़े थे। दोनों को एक साथ रखना किसी भी तरह संभव नहीं माना जाता। समय बीतने के साथ भारत के एक तबक़े का रवैया नेहरू के प्रति बदलने लगा और माना जाने लगा कि वह नेहरू से आगे निकल आए हैं। अब नेहरू को लेकर वितृष्णा दक्षिणपंथियों में घृणा के चरम पर पहुँच गई है। भगत सिंह के प्रति अनुराग बढ़ता चला गया है। विडंबना यह है कि भगत सिंह दक्षिणपंथियों और वामपंथियों के बीच एक जैसे ही लोकप्रिय हैं। नेहरू के प्रति वामपंथियों की आरंभिक वितृष्णा पिछले कुछ वर्षों में कम हुई है लेकिन उसके प्रति दुविधा बनी हुई है। दक्षिणपंथियों में नेहरू को लेकर जो हिंसक घृणा थी, वह बढ़ती चली गई है। सामान्य जनता, जो न सचेत रूप से वामपंथी है न सोच समझकर दक्षिणपंथी, उसका रुख़ इन दोनों के प्रति कमोबेश दक्षिणपंथी ही रहा है। भगत सिंह के प्रति आकर्षण बढ़ता चला गया है और नेहरू से नफ़रत गहरी होती गई है।
भगत सिंह नेहरू को सुभाष बोस से ज़्यादा पसंद करते थे!
- वक़्त-बेवक़्त
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- 27 May, 2020

यह तथ्य बहुत कम याद दिलाया जाता है कि न सिर्फ़ जवाहरलाल बल्कि उनके पिता मोतीलाल का भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और उनके संगठन से अत्यंत स्नेह का रिश्ता था। अलावा इसके कि इन दोनों ने क्रांतिकारियों को लगातार आर्थिक मदद दी, राजनीतिक रूप से भी उन्होंने ख़ुद को इनसे पूरी तरह नहीं अलग किया।
इसलिए जब भी दोनों में किसी एक पर बात करने का मौक़ा मिलता है, मैं एक खेल करता हूँ। मैं श्रोताओं से उस खेल में शामिल होने को कहता हूँ: वे ख़ुद को भगत सिंह मान लें। उनके सामने एक सवाल है: अगर वे भगत सिंह हैं तो नेहरू और सुभाषचंद्र बोस में से किसे अपना नेता मानेंगे? पहली बार तो सब असमंजस में पड़ जाते हैं लेकिन दुबारा उकसाने पर बहुसंख्या बोस के पक्ष में हाथ उठाती है। जब उन्हें बताया जाता है कि उनका उत्तर ग़लत है, यानी भगत सिंह ने यह सवाल आने पर नेहरू को चुना था, बोस को नहीं तो पहली प्रतिक्रिया अविश्वास की और फिर अचरज की ही होती है।