शुक्रवार की सुबह साफ़ हो गया कि ‘हमास’ की हिंसा में हरेक फ़िलीस्तीनी की भागीदारी थी।आख़िर इज़राइल की बमबारी में मरते हुए ग़ज़ावासियों में से किसी नेअपने आख़िरी शब्दों का इस्तेमाल हमास की आलोचना के लिए नहीं किया! एकमरती हुई औरत को खुले तौर पर हमास के उस हमले की निंदा करनी चाहिए थी,जिसमें 1300 इज़राइली मारे गए थे। लेकिन ऐसा करने की जगह उसने अपने तुरत मारे गए अपने 6 साल के बच्चे को यह कहा कि वह उससेप्यार करती थी।वे सारे लोग जिनकी उम्र युद्ध में जाने की थी जब खून की उल्टियाँकर रहे थे तो मरने के पहले उन्होंने ‘हमास’ की खुल कर निंदा नहीं की।
‘अनियन’ ने यह सब कुछ तंज में लिखा है लेकिन इसमें छिपे दर्द और ग़ुस्से कोसमझना क्या इतना मुश्किल है?
और यह क्या यह सिर्फ़ तंज है? जिसे ‘अनियन’ ने व्यंग्य में लिखा उसे इज़राइल के राष्ट्रपति ने अभिधा में कहा। उनके मुताबिक़ ग़ज़ा में कोई भी निर्दोष नहीं है। उनका तर्क यह है कि उनकी निर्दोषिता तभी साबित होती जब ग़ज़ा के सारे लोग ‘हमास’ के ख़िलाफ़ विद्रोह में उठ खड़े होते। चूँकि उन्होंने ऐसा नहीं किया है, यही माना जा सकता है कि वे सब ‘हमास’ के साथ हैं और उन्हें दुश्मन मानकर उनपर हमला किया जाना उचित है। इससे कुछ अलग बयान अमेरिका के राष्ट्रपति का है:“निर्दोष फ़िलिस्तीनी परिवारों की इतनी बड़ी आबादी का हमास से कोई लेना देना नहीं है, वे इंसानी ढाल की तरह इस्तेमाल किए जा रहे हैं।”लेकिन कोई भी देख सकता है कि इस शर्मनाक बयान के ज़रिए अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने गजा पर इज़राइल के ज़मीनी हमले को जायज़ ठहराने की चालाकी की है।
‘हमास’ क्या यही इज़राइल के उन लोगों के बारे में कह सकता है जिनकी उसने हत्या की है और जिन्हें बंधक बनाया है? यह कि इसका सबूत नहीं था कि उन्होंने फ़िलिस्तीनियों पर इज़राइली हिंसा का विरोध किया इसलिए वे भी दुश्मन माने जाएँगे जिन्हें मारा जा सकता है।
ग़ज़ा पर ज़मीनी हमला किसी भी क्षण शुरू हो सकता है। लेकिन उसके पहले ही इज़राइली ने ग़ज़ा में 2000 इंसानों की हत्या कर दी है। इनमें डॉक्टर और पत्रकार शामिल हैं। सैकड़ों बच्चे और किशोर भी हैं। लेकिन उनकी तस्वीरें दिखलाने या देखने में पश्चिमी मीडिया को दिलचस्पी नहीं है। क्रूरता की हद यह है कि फ़िलस्तीनी बच्चों की मौत का मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है। मारे गए फ़िलस्तीनी बच्चे की तस्वीर को यह कहकर झूठा बतलाया जा रहा है कि वे बच्चा नहीं गुड़िया है!
फ़िलिस्तीनियों या ग़ज़ा के लोगों की हत्या से कोई अंतर्राष्ट्रीय हाहाकार नहीं उठा है। इस खबर का हम पर क्या असर होगा कि अब तक के इज़राइली हमले में ग़ज़ा के 45 परिवारों की सारी पीढ़ियाँ ख़त्म कर दी गई हैं? जिसे वंश मिटा देना कहते हैं, वह इज़राइल ग़ज़ा के लोगों के साथ कर रहा है। क्या इस खबर से कोई विचलित हुआ है? यह खबर आई कि दो भाइयों ने अपने दो दो बच्चे अदल बदल किए हैं कि अगर वे मारे गए तो उनके बच्चों में कोई तो बच जाए! इस तरह उन दोनोंका वंश शायद चल सके। लेकिन मारे तो सभी जा सकते हैं!
सभी यह भी कह रहे हैं कि इज़राइल के भ्रष्ट प्रधानमंत्री नेतन्याहू का मक़सद किसी तरह अपनी सत्ता बचाना है जिससे वे जेल जाने से बच सकें। पिछले कई महीनों से इज़राइल की जनता न्यायपालिका पर क़ब्ज़े की कोशिश के कारण उनकी सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रही है। इज़राइल के अख़बार ‘हारेट्ज़’ के एक लेखक का कहना है वास्तव में वे इज़राइली जनता के साथ एक दिमाग़ी जंग लड़ रहे हैं।उसके लिए ‘हमास’ का यह हमला बहुत मुनासिब वक्त पर हुआ है।अब वे ‘हमास’ के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय एकजुटता के नाम पर अपने विरोध को पीछे धकेल सकते हैं।इससे ग़ज़ा के लोगों की मुश्किल और बढ़ेगी।
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इसमें कोई शक नहीं कि ‘हमास’ क्रूर है। लेकिन क्या हमें क्रूरता से एतराज है? फिर जो प्रतिक्रिया ‘हमास’ के हमले के बाद हुई वही ग़ज़ा या पश्चिमी तट के लोगों के साथ रोज़ाना की इज़राइली क्रूरता के ख़िलाफ़ क्यों नहीं होती?
‘हमास’ की हिंसा को दहशतगर्दी कहा जा रहा है। दुनिया की सारी सरकारें एकमत हैं कि वे आतंक और आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं कर सकतीं। इसलिए‘हमास’ के ख़त्म होने तक इज़राइल की हिंसा को वे बर्दाश्त करेंगे। बल्कि उसे कारगर बनाने के लिए सब कुछ करेंगे। लेकिन जो इज़राइल ग़ज़ा और पश्चिमी तटपर पिछले 5 दशक से कर रहा है, वह क्यों आतंकवाद नहीं है? क्या ग़ज़ा के लोग रोज़ रोज़ इज़राइल के आतंक के साए में नहीं जी रहे? और क्या उस आतंक से मुक्ति ग़ज़ा के लोगों का अधिकार नहीं है?
अमेरिका हो या यूरोप, इज़राइल के हमले के 8 दिन बाद तक ख़ामोश हैं। 2000 सेज़्यादा फ़िलिस्तीनियों की हत्या उनके लिए आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध की एक दुखद अनिवार्यता है। फ़िलस्तीनी बच्चों को बम से चीथड़ा कर देना अमानवीयता नहीं है। इन इंसानों को ढाल बनाकर आतंक छिपा हुआ है तो ढाल को भेदना मजबूरी है!
‘हमास’ की हिंसा की आलोचना ही हिंसा के ख़िलाफ़ सच्ची प्रतिक्रिया है। लेकिन वह तब झूठी हो जाती है जब उसी समय फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इज़राइली हिंसा पर जारी खामोशी की दीवार से टकराती है।अगर हम इज़राइल केउपनिवेशवाद को अस्वीकार नहीं करते और फ़िलिस्तीनियों के उपनिवेशवाद विरोध के साथ नहीं खड़े होते तो फिर हमें सभ्य कहलाने का हक़ क्या है?
इस सवाल को ही ठुकरा दिया जाता है यह कहकर कि मसला ‘हमास’ है। लेकिन हम सब जानते हैं कि असली मसला पश्चिमी तट और ग़ज़ा पर इज़राइल का क़ब्ज़ा है। वह क़ब्ज़ा अपने आप में हिंसा है। लेकिन उसके साथ इज़राइल रोज़ाना उस इलाक़े में हिंसा कर रहा है। न तो ग़ज़ावासियों के घर उनके अख़्तियार में हैं, न उनकी सड़कें, न उनके काम करने का अधिकार। इज़राइल उनके जीवन के हरेक पहलू को नियंत्रित करता है। ग़ज़ा के हर बाशिंदे की ज़िंदगी अनिश्चित है। वह अपनी ही ज़मीन पर तीसरे दर्जे का नागरिक है। ऐसी ज़िल्लत में अगर आपको रोज़ ब रोज़ जीना हो तो क्या आप क्या करेंगे?
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इज़राइल के उपनिवेशवाद और नस्लवाद पर इज़राइल को सोचना ही पड़ेगा। जैसा उसी के कई नागरिक कहते हैं, अगर इज़राइल को चैन से रहना है तो उसे फ़िलिस्तीनियों को आज़ादी से अपने राज्य में जीने का अधिकार देना होगा और उनके ख़िलाफ़ हिंसा ख़त्म करनी होगी।
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