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ग़ज़ा पट्टी में हमलों से ध्वस्त इमारतें।फ़ोटो साभार : ट्विटर/@matincantweet

हमास की हिंसा जायज नहीं, पर दशकों से इज़राइल क्या कर रहा है?

ग़ज़ा पट्टी पर इज़राइली हमले में तकरीबन 230 फिलीस्तीनी मारे गए हैं। कोई 2000 जख्मी हुए हैं। ये सब हमास के लड़ाके नहीं हैं। औरतें और बच्चे भी हैं। कई रिहायशी इमारतों को जमींदोज कर दिया गया है। जब तक यह टिप्पणी छपेगी, यह संख्या कई गुना बढ़ जाएगी। लेकिन सभ्य विश्व ने इस पर कोई चिंता जाहिर नहीं की है। इज़राइल को नहीं कहा है कि वह अपने हाथ रोके।

‘इज़राइल को अपनी हिफाजत करने का अधिकार है और हम उसके इस अधिकार के साथ हैं’: इस आशय का बयान अमेरिका से लेकर यूरोप तक के देश दे रहे हैं। इज़राइल के इस हमले की वाजिब वजह है, यह कहा जा रहा है। ‘हमास’ ने इज़राइल पर हमला किया है, उसी का तो यह जवाब है! अगर मसले को सिर्फ दो दिनों के संदर्भ में देखें तो बात ठीक मालूम पड़ती है। ‘हमास’ ने इज़राइल पर न सिर्फ रॉकेट दागे, बल्कि उसके लड़ाके इज़राइली सीमा में सड़क के रास्ते और हैंड ग्लाइडर और पैराशूट के सहारे घुस आए। उन्होंने इज़राइली ठिकानों पर बमबारी की। इज़राइली फौजियों को मार गिराया और उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया। उन्होंने सामान्य इज़राइली नागरिकों को भी मारा और पकड़ लिया। इनमें औरतें और बच्चे भी हैं। इज़राइल में अफरा-तफ़री मच गई। पहली बार यह दृश्य दुनिया ने देखा कि इज़राइली, जिन्होंने फिलीस्तीनी घरों और ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया है, अपनी जान बचाने को भाग रहे थे। आम तौर पर हम फिलीस्तीनी लोगों को इज़राइली पुलिस और फौज के हमलों से बचने के लिए भागते हुए देखते रहे हैं। इज़राइली औरतों और बच्चों पर हिंसा को किसी तरह जायज़ नहीं कहा जा सकता। कोई भी सभ्य समाज बदले के नाम पर भी इसकी इजाज़त नहीं दे सकता। इज़राइल फ़िलीस्तीनियों के साथ यही करता रहा है, इसलिए हमास भी उसके लोगों के साथ वही करे, यह तर्क नहीं चल सकता।

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‘हमास’ के इस हमले को हर जगह आतंकवादी हमला कहा गया है। आतंकवाद के खिलाफ जंग में इज़राइल का साथ देने का वादा अमेरिका से लेकर भारत तक ने किया है। इज़राइल के हमले को जवाबी कार्रवाई, एक राष्ट्र के अपनी रक्षा के अधिकार का इस्तेमाल आदि कहकर जायज ठहराया जा रहा है। जो इज़राइल आज कर रहा है, उसे एक वैध देश की आत्मरक्षा के नाम पर जायज ठहराया जा रहा है। लेकिन ‘हमास’ ने जो किया वह दुनिया की निगाह में दहशतगर्द कार्रवाई है।  

जिस तरह इज़राइल अपने हमले को उचित ठहरा रहा है, वैसे ही हमास ने हमले के साथ बयान जारी करके कहा है कि लंबे समय से फिलीस्तीनी जनता पर इज़राइली हिंसा, इज़राइल के द्वारा फिलीस्तीनी लोगों की हत्या, उनके घरों और ज़मीन पर अवैध कब्जे के खिलाफ वह यह कार्रवाई कर रहा है। उसने इसे एक संप्रभु जनता के अपने अधिकार की रक्षा की कार्रवाई बतलाया है। जाहिर है, उसके इस बयान पर सभ्य देश ध्यान नहीं देंगे और उसे एक अवैध संगठन ही कहते रहेंगे।

लेकिन यह तो सच है कि सिर्फ़ इसी साल अब तक इज़राइल ने 230 से अधिक फिलीस्तीनी लोगों की हत्या की है। अगर पिछले 10 साल को देखें तो उसने कोई 1,50,000 फिलीस्तीनी लोगों की हत्या की है। उनमें 33000 बच्चे हैं। औरतें, बूढ़े, अक्षम लोग भी मारे गए फिलीस्तीनियों में शामिल हैं। इन हत्याओं पर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने कभी अपनी वितृष्णा जाहिर नहीं की है। कभी खौफ नहीं जतलाया है। कभी फिलीस्तीनी लोगों को नहीं कहा है कि वह इज़राइल की इस आतंकवादी हिंसा के खिलाफ उसके साथ है। मानो फिलीस्तीनी जन को मारने और उन्हें अपनी ज़मीन से बेदखल करने का इज़राइल को दैवी अधिकार मिला हुआ है।
यह सब जानते हैं कि इज़राइल के पास हमास के मुक़ाबले अधिक मारक क्षमता है। हमास के हमले के ख़िलाफ़ वह फ़िलीस्तीनियों की कहीं अधिक बर्बादी कर सकता है। वह तबाही शुरू हो गई है।
अब तक अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने इज़राइल को यह नहीं कहा है कि वह सामान्य आबादी पर हमला न करे और साधारण नागरिकों की हत्या न करे। वह एम्बुलेंस, अस्पताल पर हमला न करे। क्या यह सब कुछ आत्मरक्षा के नाम पर जायज़ है?
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यह ठीक है कि हमास को इज़राइल के फ़ौजी ठिकानों पर हमला करना चाहिए था। सामान्य नागरिकों पर हमला अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन है। लेकिन फिर हमें इसे भी याद रखने की ज़रूरत है कि पिछले 75 साल से फ़िलीस्तीनी जन सिर्फ़ इज़राइली फ़ौज की हिंसा नहीं झेल रहे हैं। साधारण इज़राइली लोग फ़िलीस्तीनियों के ख़िलाफ़ हिंसा में शामिल हैं। वे उनकी ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रहे हैं। उन्हें उनके घरों से बेदख़ल कर रहे हैं। उनकी ज़मीन पर अपनी बस्तियाँ बसा रहे हैं। सामान्य इज़राइली लोग फ़िलीस्तीनियों के ख़िलाफ़ हिंसा कर रहे हों और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने कभी इसका कारगर विरोध किया हो, इसका उदाहरण नहीं है।

हमास के हमले से इज़राइल के लोग अचंभित रह गए हैं। उसका यह दावा कि उसके पास अभेद्य लौह कवच है, खोखला साबित हो गया है। उसकी ख़ुफ़िया निगाहों से कुछ भी छिपा नहीं रह सकता, यह घमंड भी चकनाचूर हो गया है। हिंसा की भारी ताक़त के बावजूद वह हमेशा इज़राइली जनता को सुरक्षित नहीं रख सकता। 

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जो आज हुआ, वह होना ही था, क्या हम यह नहीं जानते थे? लाखों फ़िलीस्तीनियों को एक खुली जेल में सालों साल रखते जाने की कोई क़ीमत इज़राइल को नहीं चुकानी पड़ेगी, यह सोचना ही मूर्खता है। आप एक पूरी आबादी से उसके मौलिक अधिकार छीन कर उन्हें ग़ुलामों की तरह अनंत काल तक रख पाएँगे, इस दंभ को हमेशा ही मानव इतिहास में हमने टूटते हुए देखा है।

फ़िलीस्तीनियों के पास अपनी सेना नहीं, उनके पास इज़राइल के रोज़ाना हमले से आत्मरक्षा के लिए कोई साधन नहीं। फिर हमास ही उनकी सेना है। अगर वह आतंकवादी संगठन है तो इज़राइल की फ़ौज क्यों नहीं है? जो इज़राइल रोज़ रोज़ ग़ज़ा पट्टी या पश्चिमी तट पर फ़िलीस्तीनियों के साथ कर रहा है, वह क्यों दहशतगर्दी नहीं है? 

जिस तरह रूस से कहा जा रहा है कि वह यूक्रेन पर हमला बंद करे, वैसे ही इज़राइल से कहना होगा कि वह फ़िलीस्तीनियों पर रोज़ाना का हमला बंद करे और उनकी ज़मीन से पीछे हटे। अगर इज़राइल को यह नहीं कहा जा सकता तो हमास को तंबीह कैसे की जा सकती है?

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अपूर्वानंद
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