“मेरा बच्चा कहता है कि अब वापस हिंदुओं के बीच नहीं जाना,” तनाव से तमतमाते चेहरे वाली उस महिला ने कहा। मैंने पूछा, बच्चा कहाँ है। वह वहीं था। थोड़ा शर्माता हुआ। और भी बच्चे थे। “मैं भी हिंदू हूँ,” मेरा कहने को जी चाहा। कह नहीं सका। उससे पूछा, क्यों। उसने ‘जय श्री राम’ के नारे के साथ तिलक लगाए हुए, भगवा गमछा डाले गुंडों की भीड़ अपनी गली में देखी थी। उनके दरवाजों पर डंडे बजाती हुई, गालियाँ देती हुई। पीड़ित अपनी छतों पर थे। ये दंगाई मुसलमानों को ख़त्म कर देने की धमकी दे रहे थे।
दिल्ली दंगा: “मेरा बच्चा कहता है अब वापस हिंदुओं के बीच नहीं जाना”
- वक़्त-बेवक़्त
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- 2 Mar, 2020

दिल्ली के दंगों में हज़ारों लोगों का सब कुछ तबाह हो गया। मुस्तफ़ाबाद का शिव विहार इलाक़ा मुसलमानों से खाली हो चुका है। बिना सुरक्षा के भरोसे के वे लोग कैसे वापस अपने घरों में जाएंगे? जिंदगी भर की कमाई लगाकर एक घर खड़ा किया था, उसे कैसे छोड़ दें? लेकिन जाएँगे तो तब जब सुरक्षा हो। कौन देगा सुरक्षा? वही पुलिस जिसने अपने किए को भुगतने को कहा था? जब तक पड़ोसी साथ न दें तब तक सुरक्षा कैसे होगी?
“हम तुम्हें आज़ादी देंगे,”, “इसको तुम्हारा कब्रिस्तान बना देंगे।” “लो, आज़ादी लो।” पीड़ित 100 नंबर पर फ़ोन करते रहे। पुलिस नहीं आई। फिर किसी जानकार की मदद से दो पुलिसवाले पहुँचे। उनमें से कुछ अँधेरे में छतों से कूदीं, कुछ छिपते-छिपाते निकलीं। शिव विहार से जान बचाने को भागे हज़ारों मुसलमानों में ये सिर्फ 20-22 थीं। मुस्तफ़ाबाद में अलग-अलग परिवारों ने इन्हें शरण दी थी। दिल्ली सरकार इनके लिए नहीं थी। उदारमना हिंदू धर्म के लोग नहीं थे। आख़िरकार, हममज़हब लोगों ने ही इन्हें पनाह दी।