2020 की दिल्ली की हिंसा क्या जाफ़राबाद में भीम आर्मी के भारत बंद के आह्वान के बाद मुसलमान औरतों द्वारा सड़क पर बैठ जाने की वजह से भड़की? या, क्या उसका कारण बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के द्वारा उस सड़क जाम के ख़िलाफ़ एक उत्तेजक रैली और भाषण है? मिश्रा के भाषण में निश्चय ही उकसावा था और उनके जमावड़े में हिंसा के सारे बीज थे। लेकिन क्या हिंसा उस दिन या उसके बाद शुरू हुई?
‘हिंदू बर्बाद हो रहे हैं, कोई उन्हें बचाए’
- वक़्त-बेवक़्त
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- 9 Mar, 2020

दिल्ली में हुई हिंसा क्या अचानक हो गई? नहीं, इसके लिये लंबे समय से तैयारी की जा रही थी। नफ़रती, भड़काऊ बयानों से इसके लिये माहौल बनाया जा रहा था। वर्तमान में सोशल मीडिया संदेशों के जरिये जाट, गुर्जर और अहीर समुदाय का सैन्यीकरण और हिंदुत्वीकरण करने की कोशिश हो रही है। हिंदू जातियों को उनके इतिहास की याद दिलाई जा रही है और उनमें मुसलमान विरोधी घृणा का तत्व डाला जा रहा है। इन दोनों के मेल से एक नये किस्म के हिंदुत्व का जन्म होता है।
आप कह सकते हैं कि हत्या, लूटपाट और आगजनी 24 फ़रवरी से शुरू हुई लेकिन इस हिंसा की तैयारी और उकसावा इसके काफी पहले से, यानी दिल्ली में चुनाव प्रचार के दौरान ही शुरू हो गया था। झारखंड के दुमका में हुई चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नागरिकता क़ानून का विरोध करने वालों को कपड़ों से पहचानने के लिए कहना, गृह मंत्री अमित शाह का बार-बार अपने वोटरों को शाहीन बाग़ की औरतों को करेंट देने के लिए उकसाना, एक केन्द्रीय मंत्री द्वारा देश के “गद्दारों” को गाली देकर गोली मारने का नारा लगवाना, दिल्ली के एक बीजेपी सांसद द्वारा हिन्दुओं को यह कह कर डराना कि शाहीन बाग़ में शैतान छिपे बैठे हैं जो किसी भी दिन उनकी माँ-बहनों का बलात्कार करेंगे, ये सब उकसाने वाले बयान थे।