किस क़िस्म की हिंसा दिल्ली में हुई? इस पर बहस चल ही रही है। कुछ लोगों ने इसे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दंगा कहा जिसमें दोनों पक्षों ने हिंसा की। आख़िर इस हिंसा में हिंदू भी मारे गए हैं भले ही मारे जानेवाले मुसलमानों की तादाद उनके दोगुना से भी अधिक है। अख़बारों और ख़बरी वेबसाइटों ने मारे गए लोगों के नाम छापे हैं। यह भी दिखलाया गया है कि हिंदुओं के घरों और दुकानों को भी नुक़सान पहुँचा है। इनमें से कुछ के लिए सिर्फ़ दो नाम महत्त्वपूर्ण हैं। एक पुलिसकर्मी और दूसरा नाम भी सरकारी ख़ुफ़िया संस्था से जुड़ा हुआ। दोनों इत्तिफ़ाक़ से हिंदू हैं। इससे सामाजिक मनोविज्ञान की बारीक समझ रखनेवाले आशीष नंदी जैसे विद्वान भी इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि हिंसा दोतरफा थी।
दिल्ली हिंसा की गोधरा जैसी व्याख्या कर बस्ता बंद तो नहीं कर देगी सरकार?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 16 Mar, 2020

हमें जानना ही चाहिए कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा कैसे संगठित की गई। लेकिन उसके जानने के साधन अगर दूषित हों तो सत्य कैसे पता चले! मसलन क्या किसी को वाक़ई यह जानने में दिलचस्पी है कि 27 फ़रवरी, 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के कोच नंबर 6 में आग कैसे लगी? यह हम आजतक क्यों नहीं जान पाए?
हिंसा को एक हद तक ही दोतरफा कहा जा सकता है अगर हम यह न देखें कि यह कितनी असमान थी। जब किसी हिंसा को हम दोतरफा कहते हैं तो अक्सर इस पक्ष को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। हिंसा का प्रकार जानना हो तो राज्य का रवैया हिंसा के शिकार लोगों के प्रति क्या है, उसे समझना चाहिए। राज्य समुदायों के बीच हिंसा की स्थिति में निष्पक्ष होगा और उसकी दिलचस्पी हिंसा रोकने में होगी, यह सभी समाजों का रिवाज है। लेकिन भारत में बात उलट है। चाहे 1984 हो या 2002, या 2020, भारत की पुलिस हमेशा आक्रामक हिन्दुओं के साथ खड़ी दिखलाई पड़ी है। या तो वह सिखों और मुसलमानों पर हमला होते देखती रहती है या कई बार ख़ुद हमलावरों में शामिल हो जाती है।