18वीं लोक सभा के चुनाव के नतीजों के बाद से अब तक बिहार में अलग-अलग जगहों पर एक के बाद एक 10 पुल गिर चुके हैं। यह किसी एक हिस्से में नहीं, पूरे बिहार में हुआ। किशनगंज, अररिया, मधुबनी, पूर्वी चंपारण, सीवान और सारण में एक के बाद एक 10 पुल ढह गए। एक दिन में 5 पुल ध्वस्त हुए। बारिश शुरू होते ही इतनी बड़ी संख्या में पुलों के गिरने पर भी बिहार में शासक गठबंधन से मीडिया या जनता सवाल कर रही हो, इसका कोई प्रमाण नहीं। क्रोध से ज़्यादा विनोद का भाव दिखलाई पड़ता है।
बिहार के गिरते पुलः नीतीश राज के मलबे में बदलने का अफसाना है
- वक़्त-बेवक़्त
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- 29 Mar, 2025

बिहार में पुलों के गिरने पर मजाक बन रहे हैं और मीडिया नीतीश कुमार के सुशासन के नए नए किस्से गढ़ रहा है। पिछले 15 वर्षों से राज्य में एक ही मुख्यमंत्री है लेकिन मजाल है कि उससे किसी ने सवाल पूछा हो कि ये पुल गिर रहे हैं या तुम्हारा इकबाल गिर रहा है। पर, वो सुशासन बाबू है। सवाल उससे नहीं तेजस्वी यादव से पूछे जा रहे हैं, जबकि डेढ़ दशक से राज कर रहे शख्स से कोई सवाल नहीं। आप भाजपा के साथ हैं तो बेशक सौ पुल गिर जाएं, सब पाकसाफ है। आप भाजपा के साथ नहीं हैं तो संदेशखाली भी राष्ट्रीय मुद्दा बन जाता है। स्तंभकार अपूर्वानंद बिहार में पुलों के गिरने को कुछ इस तरह देख रहे हैं। आप भी देखिएः