दहशत के दौर में शक का दायरा बड़ा होना समझ में आता है लेकिन तभी ज़रूरी है कि पुलिस की तहक़ीक़ात और कार्रवाई और सटीक और निश्चित हो। यह जोखिम पुलिस नहीं ले सकती कि ढीले-ढालेपन से सिर्फ़ मुसलमान को पकड़ ले। फिर राष्ट्र को तसल्ली देने के लिए उसे सज़ा दे दी जाए।
पापा, सभी कहते हैं तुम्हारे पापा आतंकी हैं, मैं स्कूल नहीं जाऊँगी अब।
-सय्यद वासिफ हैदर की बेटी
जेल मैंने नहीं, मेरे बच्चों ने काटी है।
-इरशाद अली
मैंने तुम्हें एटीएस के हाथों बेच दिया है....।
-अबरार अहमद ग़ुलाम अहमद
पुलिस ने मेरी जेब से मिले दो खजूर फेंक दिए, बोले- इससे तू इफ़्तारी करेगा?
-रज्जब अली
वे मेरा गुप्तांग पकड़कर खेलते और मेरा यौन शोषण करते।
-डॉ. फरोग़ अनवर इक़बाल अहमद मख़दमी
मेरी ग़िरफ़्तारी मज़हब के ख़िलाफ़ साज़िश थी।
-नूरुल हुदा
जेल प्रशासन पुराने क़ैदियों से पिटवाता था। ईद पर सेल का दरवाज़ा खोलने को कहा था। उन्होंने क़ुरान पैरों में रौंद दी।
-मोहम्मद इलियास
सज़ा और न्याय मज़हब देखकर न दी जाए।
-अमानुल्लाह अंसारी
चाह कर भी मैं अपने साथियों के बराबर नहीं आ सकता हूँ।
-वाहिद शेख़
एक ग़लत सिम ने फाज़ली को 12 साल के लिए जेल में डाल दिया।
-मोहम्मद हुसैन फाज़ली
जब इंस्पेक्टर ने कहा- तुम मुसलमान देश और हिंदुत्व के लिए पोटेंशियल थ्रेट हो...।
-तारिक़ अहमद डार
हमें ऐसा लगा कि हमें डाकू अग़वा करके ले जा रहे हैं...।
-रहमाना युसूफ फ़ारुक़ी
मेरे बाइज़्ज़त बरी होने के बावजूद मुझे मीडिया ने हमेशा आतंकी लिखा।