ज्यादा वक़्त नहीं गुजरा है जब दिसंबर में जारी ‘सुशासन सूचकांक-2021’ में उत्तर प्रदेश राज्य को ग्रुप-B में शामिल कुल आठ राज्यों में से पाँचवाँ स्थान प्राप्त हुआ था। यह सुशासन सूचकांक 10 संकेतकों पर आधारित है। विभिन्न संकेतकों में उत्तर प्रदेश की स्थिति और भी ज्यादा चिंताजनक है। सार्वजनिक स्वास्थ्य नाम के संकेतक में उत्तर प्रदेश का अंतिम अर्थात 8वां स्थान है। जबकि कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र, आर्थिक सुशासन, सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा अवसंरचना एवं जनसुविधा, तथा सामाजिक कल्याण एवं विकास जैसे महत्वपूर्ण एवं नागरिक केंद्रित संकेतकों में उत्तर प्रदेश नीचे से दूसरे स्थान अर्थात 7वें स्थान पर रहा। इससे पहले सूचकांक की आलोचना का खेल रचा जाए यह बात जानना ज़रूरी है कि सुशासन सूचकांक का विकास, प्रशासनिक सुधार एवं लोक शिकायत विभाग ने राष्ट्रीय सुशासन केंद्र, नई दिल्ली तथा सुशासन केंद्र, हैदराबाद के तकनीकी सहयोग से किया है।
‘बुलडोजर’ कानून व्यवस्था में कैसा निवेश, कैसा अमृत महोत्सव!
- विमर्श
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- 5 Jun, 2022

यूपी इन्वेस्टर्स समिट को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदत्यनाथ ने कहा है कि यूपी निवेशकों का ड्रीम डेस्टिनेशन है। क्या सच में ऐसा है? क़रीब-क़रीब हर सूचकांक में बेहद ख़राब प्रदर्शन करने वाला यूपी क्या बदल रहा है?
दिसंबर, 2021 में ही पीएम मोदी द्वारा योजना आयोग को विस्थापित करके बनाई गई संस्था, नीति आयोग, ने स्वास्थ्य सूचकांक जारी किया था। इसका शीर्षक है- “स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत रिपोर्ट”। 2018 से हर साल जारी होने वाली इस रिपोर्ट में नीति आयोग ने पाया कि उत्तर प्रदेश इस स्वास्थ्य सूचकांक में अंतिम पायदान पर है। यह रिपोर्ट इसलिए अहम है क्योंकि इसमें राज्य सरकार के पास कोविड के दौरान फैली अव्यवस्था से बचने का मौका नहीं है। उसका कारण यह है कि यह रिपोर्ट कोरोना के शुरू होने के पहले आंकड़ों पर आधारित है। अर्थात यह उन आंकड़ों को प्रदर्शित करती है जो यह बताते हैं कि जब देश में कोरोना शुरू होने वाला था तब उत्तर प्रदेश की स्थिति क्या थी। 24 संकेतकों पर आधारित यह सूचकांक विश्व बैंक के तकनीकी सहयोग तथा केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के परामर्श से तैयार किया गया है।