प्रेमचंद के कालजयी उपन्यास ‘गोदान’ में नायक ‘होरी’ की मौत एक ‘त्रासदी’ है। लेकिन उससे भी त्रासद यह है जिस गाय को वह कभी अपनी आमदनी से न खरीद सका, और उसी चाह में मर भी गया, उसकी मौत के बाद ‘समाज’ उसी गाय को खरीद कर उसे दान देने की परंपरा के उसके ‘कर्तव्य’ के लिए बाध्य करने की कोशिश करता है। गोदान की त्रासदी तो होरी की पत्नी धनिया द्वारा इस ‘कर्तव्य’ को नकारने से ख़त्म हो जाती है लेकिन भारतीय नागरिकों की त्रासदी ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही है।