16 सितंबर को भारत के पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द और भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन ने, अंबेडकर एंड मोदी: रिफॉर्मर्स आइडियाज, परफॉर्मर्स इम्प्लीमेंटेशन, नाम की एक पुस्तक का विमोचन किया। संगीतकार और राज्यसभा सदस्य इलैयाराजा ने इस पुस्तक के लिए प्रस्तावना लिखी है।
हाथरस के बाद लखीमपुर: नेताओं ने कुछ नहीं सीखा?
- विमर्श
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- 18 Sep, 2022

देश में निर्भया, हाथरस जैसी बलात्कार की जघन्य वारदात हुई हैं और अब लखीमपुर का मामला एक ताजा उदाहरण है। लेकिन तमाम बड़े नेता इन मामलों पर चुप क्यों हैं, बोलते क्यों नहीं।
12 अध्यायों में तैयार इस पुस्तक में अंबेडकर और नरेंद्र मोदी की तुलना की कोशिश की गई है। वर्तमान इंसानों की महान लोगों से तुलना कोई गलत बात नहीं है लेकिन इस पुस्तक के संदर्भ में यह मात्र एक दिमागी फैंटेसी नजर आती है। अंबेडकर के संबंध में पहला विचार उनके द्वारा किए गए संविधान निर्माण में उनके योगदान के संदर्भ में आता है।
लेकिन सच तो यह है कि अंबेडकर का निर्माण जातिगत शोषण और उसके खिलाफ उनके सशक्त संघर्ष के दौरान, पहले ही हो चुका था। अंबेडकर होने का प्राथमिक अर्थ है शोषण के खिलाफ ‘पहली आवाज’ बनना। अंबेडकर के पास शोषण के विरुद्ध लड़ने के लिए कोई तराजू नहीं था जिसे वह बोलने और एक्शन लेने से पहले ‘तौलने’ में इस्तेमाल करते। यही वास्तविक भीमराव अंबेडकर हैं।