सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बी.एन. कृष्णा ने एक अंग्रेजी अखबार के साथ अपनी बातचीत में कहा कि “आज हालात बहुत ख़राब हैं। मुझे स्वीकार करना होगा कि, अगर मैं एक सार्वजनिक चौक में खड़ा होता और कहता कि मुझे प्रधानमंत्री का चेहरा पसंद नहीं है, तो कोई मेरे घर पर छापा मार सकता है, मुझे गिरफ्तार कर सकता है, और मुझे बिना कोई कारण बताए जेल में डाल सकता है। यह एक ऐसी चीज है जिसका नागरिकों के रूप में हम सभी को विरोध करना चाहिए।”
क्या राहुल गांधी की निडरता से डरती है बीजेपी?
- विमर्श
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- 4 Sep, 2022

'कांग्रेस मुक्त भारत’ के माध्यम से बीजेपी क्या संदेश देना चाहती है? हर मुद्दे पर आख़िर बीजेपी या खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राहुल गांधी को निशाने पर क्यों लेते हैं?
2022 के भारत को लेकर यह चिंता किसी सामान्य आदमी की नहीं है। यह चिंता है एक ऐसे व्यक्ति की जिसने 16 वर्षों तक देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों व भारत के सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य किया है। सोचने की बात यह है कि यदि सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश अपनी ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ को लेकर चिंतित है और संभवतया भय में भी है तो आम नागरिकों, समाज सेवियों और विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं और नेताओं के भय की कल्पना सहज ही की जा सकती है। देश में सरकारी नीतियों के खिलाफ लिखना तो जारी है लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनिश्चित स्थिति डराने वाली है। बहुत से लोग लिख रहे हैं और बहुत से लोगों को लिखने से रोक दिया गया है। बहुत से लोग बोल रहे हैं, साथ ही बहुतों को बोलने से रोक दिया गया है। यह अनिश्चितता है, और यही डराने वाली है। जिस तरह लोकतंत्र के टूल्स का इस्तेमाल करके भयतंत्र का प्रोटोटाइप तैयार किया जा रहा है, यह डराने वाला है।