1990 में एक लंबे अंतराल के बाद अर्जेन्टीना में एक के बाद एक लोकतान्त्रिक सरकारों का आना शुरू हुआ। अब पहले का वह दौर खत्म हो चुका था जब कभी लोकतान्त्रिक तो कभी सैन्य सरकारों का शासन आया करता था। लेकिन नई आने वाली लोकतान्त्रिक सरकारों ने भी पूर्ववर्ती सैन्य सरकारों द्वारा बर्बाद किए गए संस्थानों, जैसे-न्यायपालिका, आदि को पहले की तरह ही चलाया जाना ठीक समझा।
बिना चर्चा के क़ानूनों का ‘आना-जाना’: संसदीय लोकतंत्र में घुन
- विमर्श
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- 30 Dec, 2021

तीन कृषि क़ानून अच्छे थे या बुरे, किसानों के भले के लिए थे या उद्योगपतियों के भले के लिए, सरकार की मंशा अच्छी थी या शोषणकारी इसका जवाब जानने के लिए संसद के माध्यम से ‘चर्चा का प्रावधान’ है। लेकिन क्या चर्चा हुई?
अर्जेन्टीना का प्रमुख राजनैतिक दल पेरॉनिस्ट पार्टी के आगामी राष्ट्रपति कार्लोस सौल मेनेम थे जो कहने को तो एक लोकतान्त्रिक पार्टी के उम्मीदवार थे लेकिन उन्होंने पहले से कार्यरत सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को कभी प्रलोभन देकर तो कभी डरा धमका कर इस्तीफा देने पर बाध्य करने की कोशिश की। एक मामला है; जब राष्ट्रपति सौल मेनेम ने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश जस्टिस कार्लोस फे को अम्बेस्डर बनाने का प्रस्ताव दिया। जस्टिस फे ने जवाब में अपनी लिखी किताब ‘जस्टिस एण्ड एथिक्स’ की एक कॉपी उन्हें भेजते हुए साथ में एक नोट भी भेजा जिसमें लिखा था “सावधान! यह किताब मैंने लिखी है”।