संसद में बुधवार को विपक्ष ने केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का मुद्दा उठाना चाहा तो उसे रोका गया। इस पर जबरदस्त हंगामा हुआ। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस विरोध में शामिल हुईं और वेल तक जा पहुंचीं। संसद को दो बार स्थगित करना पड़ा।
कहा जाता है कि सदन को चलाना सरकार की प्राथमिक ज़िम्मेदारी होती है और सदन को सुचारू रूप से चलाने में विपक्ष को सहयोग देना चाहिए, तो क्या दोनों ही पक्ष अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा नहीं कर रहे?
तीन कृषि क़ानून अच्छे थे या बुरे, किसानों के भले के लिए थे या उद्योगपतियों के भले के लिए, सरकार की मंशा अच्छी थी या शोषणकारी इसका जवाब जानने के लिए संसद के माध्यम से ‘चर्चा का प्रावधान’ है। लेकिन क्या चर्चा हुई?
कृषि क़ानून, सीएए जैसे अधिकतर क़ानूनों के ख़िलाफ़ जबरदस्त आंदोलन क्यों हो रहे हैं? क्या क़ानून बनाने या सुधार करने से पहले पर्याप्त चर्चा नहीं हो रही है? पहले संशोधन विधेयक संयुक्त समितियों को भेजे जाने का चलन था, क्या अब वैसा हो रहा है?