loader

नये क़ानूनों से लोग आंदोलित क्यों हैं? 

हम मनुष्य सामाजिक प्राणी हैं। प्राचीन काल से ही समाज को सभ्य बनाए रखने के लिए क़ानून बनाए जाते रहे हैं। पहले समाज सरल था, ज़रूरतें सीमित थीं इसलिए सामुदायिक जीवन के सामान्य नियम विकसित हुए। उसके बाद जटिलताएँ बढ़ने के साथ, धर्मों की खोज हुई और धार्मिक क़ानूनों का उदय हुआ, जिनका पालन दैवीय शक्ति के डर से किया गया। 

आधुनिक समय में, शासन संवैधानिक लोकतंत्र के माध्यम से होता है और प्रतिनिधि निकाय यानी विधायिका के माध्यम से नागरिक क़ानून बनाने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। यह अपेक्षा की जाती है कि आधुनिक समय में क़ानूनों के निर्माण में मानव अधिकारों की सुरक्षा और समानता व कल्याण को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

75वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर, भारत के प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना ने देश में क़ानून निर्माण और संसदीय बहस की दयनीय स्थिति पर अफसोस जताया। उनके अनुसार क़ानूनों में बहुत अस्पष्टता है, वे लोगों के लिए बहुत सारी मुक़दमेबाज़ी और असुविधा पैदा करने का कारण बन रहे हैं। उनका मानना है कि क़ानून बनाने के मानकों में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट आई है और जिस बिजली की गति से क़ानून पारित किए जा रहे हैं, वह गहरी चिंता का विषय है।

ताज़ा ख़बरें

संविधान हमारा मूल विधान है और सभी क़ानूनों को इसके द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर बनाया जाता है। संविधान बनाने में 2 साल 11 महीने से अधिक का समय लगा था। संसद और राज्य विधानमंडलों का निर्माण विधायिका के तहत किया जाता है जिसका अर्थ है कि ये वे मंच हैं जो क़ानून बनाते हैं। यह दिखाता है कि संविधान के अनुसार इन सदनों का प्राथमिक कार्य क़ानून बनाना है, बाक़ी काम गौण हैं। 

पहले संशोधन विधेयक संयुक्त समितियों को भेजे जाने का चलन था, जिन पर न केवल संसद में बल्कि सार्वजनिक रूप से भी लंबी बहस होती थी। मुझे नहीं याद आ रहा है कि हाल के संवैधानिक संशोधनों पर सार्वजनिक मंचों पर कोई बहस हुई है, विधेयकों पर आपत्तियाँ मंगाई गई हैं, रिपोर्टों को संबंधित संसदीय समितियों के सामने प्रस्तुत किया गया है या संसद में बहस हुई है। इसके परिणामस्वरूप सहकारी, राष्ट्रीय न्यायिक जवाबदेही जैसे संशोधन हुए, जो संवैधानिकता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निष्प्रभावी कर दिए गए। ओबीसी से संबंधित संशोधन को थोड़े समय के भीतर ही फिर से संशोधित किया गया।

यहाँ तक कि हमने देखा है, जल्दबाज़ी में बनाए गए क़ानूनों से भारतीय नागरिकों का एक बड़ा वर्ग परेशान और आंदोलित हुआ। कहा गया था कि किसानों से जुड़े क़ानून उनकी बेहतरी के लिए बनाए गए हैं लेकिन देश में उन क़ानूनों के ख़िलाफ़ एक साल से किसानों का अभूतपूर्व आंदोलन देखने को मिल रहा है। 

laws made without proper debate in parliament causing agitation  - Satya Hindi
नागरिकता संशोधन अधिनियम हमारे संवैधानिक लोकतंत्र पर एक और धब्बा है जिसने देश की प्रतिष्ठा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुक़सान पहुँचाया है और सरकार को पूरे देश में विरोध का सामना करना पड़ा है।

7वीं अनुसूची में 3 सूचियाँ हैं जो उन विषयों को निर्दिष्ट और अलग करती हैं जिन पर संसद और राज्य विधानमंडल क़ानून बना सकते हैं, दोनों ही समवर्ती सूची में उल्लिखित विषयों पर क़ानून बना सकते हैं। अंतरराज्यीय परिषद बनाए जाने का प्रावधान है ताकि कोई भी क़ानून या नीति बनाने से पहले केंद्र और राज्यों के बीच संवाद हो सके। संसद में चर्चा से पहले, संसदीय समितियों द्वारा विधेयकों की छानबीन की अपेक्षा की जाती है और लोगों की प्रतिक्रिया जानने के लिए उन पर आम चर्चा होना भी अपेक्षित है।

विचार से ख़ास

फ़रवरी, 2000 में न्यायमूर्ति वेंकटचलैया की अध्यक्षता में, ‘संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग’ का गठन किया गया था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में क़ानून की गुणवत्ता के बारे में अपनी नाराज़गी व्यक्त की थी और कुछ सिफारिशें की थीं, जिसमें यह सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक समिति का गठन शामिल है कि जो क़ानून बनाए जाने हैं, वे संविधान के विरुद्ध तो नहीं हैं और संशोधनों को आम क़ानूनों की तरह संसद में पेश नहीं किया जाए।

क़ानून बनाने वालों की ज़िम्मेदारी बहुत अहम होती है, उनका एक वोट लाखों परिवारों की क़िस्मत बदल देता है। चूँकि संसद क़ानूनों पर चर्चा करने के लिए पर्याप्त समय देने में सक्षम नहीं है इसलिए कार्यपालिका में संसद के समक्ष लाए बिना महत्वपूर्ण नीतियाँ बनाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। 500 और 1000 के नोट की नोटबंदी एक ऐसी ही कार्रवाई थी जिसने देश के सभी नागरिकों को बुरी तरह से प्रभावित किया। कराधान क़ानूनों में अनिश्चितता हमारे आर्थिक विकास के लिए एक और बड़ा ख़तरा है।

ख़ास ख़बरें

क़ानून की ख़राब गुणवत्ता के लिए सांसदों या विधायिकाओं को पूरी तरह से ज़िम्मेदार ठहराना उचित नहीं, हम आम आदमी भी समान रूप से ज़िम्मेदार हैं। सांसद और विधायक क़ानून बनाने के लिए चुने जाते हैं लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि वे हमारी सड़कों, नालियों की समस्या सुलझाएँगे, यह भूलकर कि इस उद्देश्य के लिए हमारे पास नगर निकाय और ग्राम पंचायतें हैं। हम अपने प्रतिनिधियों से इस पर भी सवाल नहीं करते कि क़ानून बनाते समय व्यापक हितों का ध्यान नहीं रखा गया या ऐसे क़ानूनों पर चर्चा के दौरान सदन से वे अनुपस्थित रहे।

हम बेहतर क़ानूनों की अपेक्षा करते हैं तो हमें अपने प्रतिनिधियों के प्रदर्शन के बारे में अधिक सतर्क रहना चाहिए। साथ ही, हमारे प्रतिनिधियों को संवैधानिक जनादेश और लोकतंत्र के मंदिरों में प्रवेश करते समय ली गई शपथ का ध्यान रखना चाहिए।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
फिरदौस मिर्जा
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें