हम मनुष्य सामाजिक प्राणी हैं। प्राचीन काल से ही समाज को सभ्य बनाए रखने के लिए क़ानून बनाए जाते रहे हैं। पहले समाज सरल था, ज़रूरतें सीमित थीं इसलिए सामुदायिक जीवन के सामान्य नियम विकसित हुए। उसके बाद जटिलताएँ बढ़ने के साथ, धर्मों की खोज हुई और धार्मिक क़ानूनों का उदय हुआ, जिनका पालन दैवीय शक्ति के डर से किया गया।
नये क़ानूनों से लोग आंदोलित क्यों हैं?
- विचार
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- 9 Sep, 2021

कृषि क़ानून, सीएए जैसे अधिकतर क़ानूनों के ख़िलाफ़ जबरदस्त आंदोलन क्यों हो रहे हैं? क्या क़ानून बनाने या सुधार करने से पहले पर्याप्त चर्चा नहीं हो रही है? पहले संशोधन विधेयक संयुक्त समितियों को भेजे जाने का चलन था, क्या अब वैसा हो रहा है?
आधुनिक समय में, शासन संवैधानिक लोकतंत्र के माध्यम से होता है और प्रतिनिधि निकाय यानी विधायिका के माध्यम से नागरिक क़ानून बनाने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। यह अपेक्षा की जाती है कि आधुनिक समय में क़ानूनों के निर्माण में मानव अधिकारों की सुरक्षा और समानता व कल्याण को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
75वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर, भारत के प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना ने देश में क़ानून निर्माण और संसदीय बहस की दयनीय स्थिति पर अफसोस जताया। उनके अनुसार क़ानूनों में बहुत अस्पष्टता है, वे लोगों के लिए बहुत सारी मुक़दमेबाज़ी और असुविधा पैदा करने का कारण बन रहे हैं। उनका मानना है कि क़ानून बनाने के मानकों में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट आई है और जिस बिजली की गति से क़ानून पारित किए जा रहे हैं, वह गहरी चिंता का विषय है।