संविधान निर्माताओं ने इस संभावना की कल्पना नहीं की होगी कि शासन के तरीक़े के ख़िलाफ़ शिकायत करने के लिए स्वतंत्र भारत के नागरिक इतनी बड़ी संख्या में अदालतों का रुख करेंगे। लंबित मुक़दमे वास्तव में अपने प्रतिनिधियों और लोक सेवकों के कामकाज के प्रति नागरिकों के असंतोष को अभिव्यक्त करते हैं।
सांसद सक्रिय हो जाएँ तो अदालतों में लंबित मामले कम हो जाएँगे!
- विचार
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- 23 Aug, 2021

अदालतों में विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या आजकल चर्चा का विषय है। आख़िर इसका क्या निकल सकता है समाधान...
भारत में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की पहचान ‘संविधान के संरक्षक’ के रूप में है। दुनिया में बहुत कम न्यायालयों के पास ऐसी शक्तियाँ हैं। हमारे न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करते हुए विधायिका द्वारा पारित किसी भी क़ानून को असंवैधानिक घोषित कर सकते हैं, उनके पास सभी सरकारी नीतियों और कार्यों की न्यायिक समीक्षा की शक्ति है। नागरिक इन न्यायालयों को उत्पीड़न के ख़िलाफ़ अपने रक्षक के रूप में देखते हैं। डॉ. आंबेडकर के अनुसार अनुच्छेद-32, जो सर्वोच्च न्यायालय को शक्ति प्रदान करता है, वह संविधान की आत्मा और हृदय है।