संविधान निर्माताओं ने इस संभावना की कल्पना नहीं की होगी कि शासन के तरीक़े के ख़िलाफ़ शिकायत करने के लिए स्वतंत्र भारत के नागरिक इतनी बड़ी संख्या में अदालतों का रुख करेंगे। लंबित मुक़दमे वास्तव में अपने प्रतिनिधियों और लोक सेवकों के कामकाज के प्रति नागरिकों के असंतोष को अभिव्यक्त करते हैं।