संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने को है और मौसम में ठंडक बढ़ने के साथ-साथ राजनीतिक गर्माहट की तपन महसूस होने लगी है। यह राजनीतिक गर्माहट शायद इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि संसद के सत्र के तुरंत बाद अगले साल फ़रवरी-मार्च में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। संसद के इस सत्र से पहले हिमाचल प्रदेश की राजधानी के खुशनुमा मौसम में देश भर के पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन हुआ यानी लोकसभा और राज्यसभा के साथ-साथ विधानसभाओं के अध्यक्षों ने इसमें हिस्सा लिया।
क्या संसद में सवालों का सामना करने के लिये सरकार तैयार है?
- विचार
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- 19 Nov, 2021

संसद में सदन की बैठकों की संख्या और क़ानून बनाते वक़्त चर्चा की कमी चिंता का विषय है। एक ज़माने पहले तक सभी महत्वपूर्ण बिल संसदीय समितियों के पास विस्तार से चर्चा और मनन के लिए भेजे जाते थे। इन समितियों की बैठकों में न केवल बिल पर विस्तार से चर्चा होती थी, बल्कि पार्टी की भूमिका से दूर रह कर सांसद इस पर अपनी ईमानदार राय रखते थे।
संसद और विधानसभाओं को चलाने का ज़िम्मा सदन के सभापति या अध्यक्ष का होता है और माना जाता है कि वो पार्टी हितों से दूर रह कर सदन चलाने का काम करेंगे, लेकिन क्या ऐसा हो पाता है? क्या ऐसा होना मुमकिन है? क्या सदन के अध्यक्ष अपनी पार्टी के हितों या सरकारों को बचाने के लिए कई बार ऐसे काम भी कर देते हैं जिनको लेकर काफ़ी आलोचना होती है।