पूरा एक सप्ताह बीत गया, ना तो बात हुई, ना बात बन पाई। फिर बात बनाने की कोई ईमानदार कोशिश भी नहीं हुई। किसका ‘ईगो’ या अहंकार बड़ा रहा- जो माफ़ी मांगने के लिए कह रहे हैं या फिर जो पूछ रहे हैं कि किस बात के लिए माफ़ी? इस बहस से बड़ा मसला यह है कि नुक़सान जनता का हो रहा है। जनता के मुद्दों पर चर्चा नहीं हो रही