पूरा एक सप्ताह बीत गया, ना तो बात हुई, ना बात बन पाई। फिर बात बनाने की कोई ईमानदार कोशिश भी नहीं हुई। किसका ‘ईगो’ या अहंकार बड़ा रहा- जो माफ़ी मांगने के लिए कह रहे हैं या फिर जो पूछ रहे हैं कि किस बात के लिए माफ़ी? इस बहस से बड़ा मसला यह है कि नुक़सान जनता का हो रहा है। जनता के मुद्दों पर चर्चा नहीं हो रही।
संसद को चलाने की ज़िम्मेदारी किसकी है?
- विचार
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- 31 Jan, 2021

संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने के लिए दोनों सदनों में नियम बने हुए हैं। इन नियमों के तहत सांसदों को दूसरे के भाषण में बाधा डालने की इजाज़त भी नहीं है। लोकसभा में इन नियमों में 1989 में बदलाव किया गया। अब सांसदों के सदन में नारेबाज़ी करने, प्लेकार्ड दिखाने, सरकारी काग़ज फाड़ने और कैसेट या कुछ और बज़ाने पर रोक है।
संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में मौटे तौर पर कोई कामकाज नहीं हुआ। पार्लियामेंट शब्द लैटिन भाषा से बना है जिसका मतलब है बातचीत, संवाद तो फिर पार्लियामेंट में बैठने वालों के बीच संवादहीनता क्यों हो रही है, क्या आपस में बैठकर कोई मुद्दा हल नहीं किया जा सकता और यह मुद्दा कोई इतना गंभीर राष्ट्रीय हित या सीमा विवाद जैसा नहीं है, लगता है कि विषय से ज़्यादा अहम बड़ा हो गया है?