किसी लोकतंत्र की स्थापना, संचालन और गुणवत्ता उसमें किसी समय विशेष पर उपस्थित/जीवित जागरूक नागरिकों की संख्या पर निर्भर करती है, वोट देने वाले नागरिकों की संख्या पर नहीं। अपनी बौद्धिकता की वजह से हर रोज मरने वाला जागरूक नागरिक उस प्लेटफॉर्म की नींव में लगातार कॉन्क्रीट डालता रहता है जिसके लिए आम नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग करता है। जागरूक नागरिकों की संख्या जिस अनुपात में बढ़ती है उसी अनुपात में राजनैतिक नेतृत्व की जवाबदेही भी बढ़ती है।