भारत के संविधान का अनुच्छेद 69 भारत के होने वाले उपराष्ट्रपति से एक शपथ की आशा करता है। इसके अनुसार देश के उपराष्ट्रपति को शपथ लेनी होती है जिसमें वह राष्ट्रपति के सामने कहता है कि “मैं…..संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा तथा जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूं उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूंगा”। शपथ का एक हिस्सा संविधान के प्रति (न कि किसी दल, व्यक्ति या संगठन के प्रति) ‘श्रद्धा और निष्ठा’ का आश्वासन चाहता है तो दूसरा हिस्सा ‘कर्तव्यों के श्रद्धापूर्वक निर्वहन’ का। लेकिन भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जिस तरह की टिप्पणी कांग्रेस के बड़े नेता राहुल गांधी पर की है वह उपराष्ट्रपति के पद की गरिमा के खिलाफ है।
क्या भाजपा एक खामोश भारत चाहती है?
- विमर्श
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- 29 Mar, 2025

राहुल गांधी द्वारा कैंब्रिज विश्वविद्यालय में दिए गए लेक्चर में आख़िर क्या ग़लत है कि बीजेपी और उपराष्ट्रपति तक आलोचना कर रहे हैं?
राहुल गांधी ने हाउस ऑफ कॉमन्स परिसर, लंदन में ब्रिटिश सांसदों को संबोधित करते हुए कहा था कि लोकसभा में काम कर रहे माइक्रोफोन अक्सर विपक्ष के लिए खामोश कर दिए जाते हैं। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए उपराष्ट्रपति ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि “भारतीय संसद में माइक बंद कर दिया गया है… इससे बड़ा कोई झूठ नहीं है। मेरा यह संवैधानिक कर्त्तव्य है कि मैं दुनिया को यह बताऊँ कि भारतीय संसद में ऐसा कभी नहीं हुआ है...”। वो आगे कहते हैं, “अगर मैं देश के बाहर किसी संसद सदस्य द्वारा किए गए इस तरह के आयोजन पर चुप्पी बनाए रखता हूं, जो कि गलत धारणा से प्रेरित है तो मैं संविधान के गलत पक्ष में रहूँगा”। कांग्रेस भी जवाब में संवैधानिक पद और ‘चीयरलीडर’ में अंतर समझा रही है और इन सबके बीच अगर किसी का नुकसान हो रहा है तो वह है संविधान। संविधान सभा में डॉ. भीमराव आंबेडकर ने साफ़ साफ़ शब्दों में कहा था कि “…उपराष्ट्रपति के कार्य सामान्य हैं। उसका मुख्य कार्य राज्यसभा की अध्यक्षता करना है”।(संविधान सभा बहस, भाग-7) लेकिन उपराष्ट्रपति एक ऐसे मामले में उलझ गए जिसका उनसे कोई संबंध नहीं था। सभापति के रूप में उनका मुख्य कार्य है निष्पक्षता अर्थात जनता को कभी न लगे कि वह संविधान के बहाने अपनी उस पार्टी के साथ खड़े हैं जिसने उन्हें उपराष्ट्रपति के लिए दावेदार बनाया था। एक बार उन्होंने कहा था कि “उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें उपराष्ट्रपति के लिए चुना जाएगा”, भले ही यह भाव कभी उनके मन में रहा हो लेकिन अब उन्हें पार्टी आधारित कृतज्ञता को त्याग कर संवैधानिक तटस्थता का पालन करना चाहिए।