भारतीय संविधान की तीसरी अनुसूची में तमाम अन्य शपथों के अतिरिक्त भारतीय राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए भी बाध्यकारी शपथ की व्यवस्था की गई है। जिसके अनुसार वह व्यक्ति जिसे मुख्यमंत्री बनना है उसे यह प्रतिज्ञा लेकर कहना होता है कि “मैं,….विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा, मैं..राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।”
लोकतंत्र की बदहाली, असम से दिल्ली तक
- विमर्श
- |
- |
- 29 Mar, 2025

भारतीय लोकतंत्र पर हमला एक तरफ से या एक जगह से नहीं हो रहा है। चाहे वो असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा हों या फिर भारत के प्रधानमंत्री हों, हमलों की बौछार है। भारतीय संसद में विपक्षी नेताओं के माइक कभी बंद नहीं किए गए, लेकिन मोदी राज में यह भी मुमकिन हो गया। ऐसे में उस शपथ का क्या महत्व रह गया है, जो किसी राज्य का मुख्यमंत्री या देश का प्रधानमंत्री संविधान के नाम पर खाता है।