भारत के लगभग हर मीडिया आउट्लेट में चुनावी राजनीति की ही चर्चा है। कौन सी सरकार गिरने वाली है और कौन सी गिरते गिरते रह गई, कौन सा नेता कब पाला बदलेगा; इसे बताने के लिए राजनैतिक मौसम विज्ञानियों की कमी नहीं है।
सियासी 'खरीद-फरोख्त' का सिलसिला रुके तब न पर्यावरण बचाएँ!
- विमर्श
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- 28 Aug, 2022

क्या ऐसी स्थिति की कल्पना की जा सकती है जिसमें तापमान अगले कुछ दशकों में औसत रूप से क़रीब 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाए? आख़िर भारत में पर्यावरण नुक़सान से बचने के लिए क्या किया जा रहा है? पर्यावरण सूचकांक में भारत फिसड्डी क्यों है?
लेकिन जलवायु परिवर्तन का मुद्दा जो कि मानवता के अस्तित्व के लिए ख़तरा बनता जा रहा है उस पर महीनों तक कोई बहस नहीं होती। इस मुद्दे पर बहस या ख़बर सिर्फ तब बनती है जब प्रकृति हजारों इंसानों को बिना किसी भेदभाव के लाशों की कतार में बदल देती है। 2013 में केदारनाथ, उत्तराखंड में घटी त्रासद घटना से लेकर हाल में हुई बादल फटने की घटनाओं में प्रकृति अपना रुख साफ कर चुकी है।
2022 के पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में 180 देशों को शामिल किया गया था। इन 180 देशों में भारत को अंतिम अर्थात 180वां स्थान प्राप्त हुआ है। इस सूचकांक को प्रत्येक दो वर्षों में, येल विश्वविद्यालय, कोलम्बिया विश्वविद्यालय, विश्व आर्थिक मंच व यूरोपियन आयोग के सहयोग से जारी किया जाता है। तीन नीतिगत उद्देश्यों और 40 संकेतकों पर आधारित यह सूचकांक दुनिया का सबसे भरोसेमंद और प्रतिष्ठित पर्यावरण सूचकांक है।